Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 481
________________ ४४४ ( ४५८) नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावए परं । आणि अ अहिजित्ता, रओ सुअसमाहिए ॥ ९-४-३॥ (सूत्र - १९) चउव्विहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा - नो इहलोगट्टयाए तवमहिङिजा -१, नो परलो गट्टयाए तवमहिडिजा २, नो कित्तवण्णसहसिलो गट्टयाए तवमहिडिजा - ३, नन्नत्थ निज्जरडयाए तवमहिट्टिज्जा - ४ | चउत्थं पयं भवइ || अ० ९-उ०४, सूत्र -४ ॥ भवइ अ इत्थ सिलोगो - ( ४५८) विविहगुणतवोरए निच्चं, भवइ निरासए निज्जरट्ठिए । तवसा घुण पुराणपावगं, जुत्तो सया तवसमाहिए | 118-8-811 (सूत्र - २०) चउच्चिहा खलु आयारसमाही भवइ, तं जहा - नो इहलोगड्डयाए आयारमहिट्ठिज्जा - १, नो परलोगट्टयाए आयारमहिडिजा - २, नो कित्ति - वण्ण-सह-सिलो गट्ट्याए आयारमहिट्टिज्जा - ३, नन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिडिजा-४ | चउत्थं पयं भवइ ।। ९ - ४ - सूत्र ५ ॥ भवइ अ इत्थ सिलोगो(४६०) जिणवयणरए अतितिणे, पडिपुन्नाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंकुडे, भवइ अ दंते भावसंघ ॥४-५॥ (४६१) अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्धो सुसमाहिअप्पओ । विउलहिअं सुहावहं पुणो, कुव्वइ अ सो पयखेममप्पणो ॥ (४६२) जाहमरणाओ मुच्चर, इत्थंत्थं च चएह सव्वसो । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महडूढिएत्ति बेमि ॥९-४-७॥ Jain Education International [દશ વૈકાલિક For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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