Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 483
________________ ४४६ [श वैलि (४७०) तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा; तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू ॥१०-८॥ (४७१) तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। छंदिअ(य) साहम्मिआण भुंजे; भुच्चा सज्झायरए जे स भिक्खू ॥१०-९॥ (४७२) न य वुग्गहियं कहं कहिज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमे धुवं जोगेण जुत्ते उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ॥१०-१०॥ (४७३) जो सहइ हु गामकंटए, अकोसपहारतज्जणाओ अ। भयभेरवसद्दसप्पहासे; समसुहदुक्खसहे अ जे स भिक्खू ॥१०-११॥ (४७४) पडिमं पडिवज्जिआ मसाणे, नो भीयए भयभेरवाई दिस्स । विविहगुणतवोरए अ निच; नसरीरं चाभिकंखए जे स भिक्खू ॥१०-१२।। (४७५) असई वोसट्टचत्तदेहे, अक्कुठे व हए व लूसिए वा। पुढवीसमे मुणी हविज्जा, अनियाणे अकोउहल्ले जे स भिक्खू ॥१०-१३॥ (४७६) अभिभूय काएण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्तु जाईमरणं महब्भयं; तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥१०-१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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