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[श वैलि (४७०) तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं
लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा;
तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू ॥१०-८॥ (४७१) तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। छंदिअ(य) साहम्मिआण भुंजे;
भुच्चा सज्झायरए जे स भिक्खू ॥१०-९॥ (४७२) न य वुग्गहियं कहं कहिज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमे धुवं जोगेण जुत्ते
उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ॥१०-१०॥ (४७३) जो सहइ हु गामकंटए, अकोसपहारतज्जणाओ अ। भयभेरवसद्दसप्पहासे; समसुहदुक्खसहे अ जे स
भिक्खू ॥१०-११॥ (४७४) पडिमं पडिवज्जिआ मसाणे, नो भीयए भयभेरवाई
दिस्स । विविहगुणतवोरए अ निच;
नसरीरं चाभिकंखए जे स भिक्खू ॥१०-१२।। (४७५) असई वोसट्टचत्तदेहे, अक्कुठे व हए व लूसिए वा। पुढवीसमे मुणी हविज्जा, अनियाणे अकोउहल्ले
जे स भिक्खू ॥१०-१३॥ (४७६) अभिभूय काएण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्तु जाईमरणं महब्भयं;
तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥१०-१४॥
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