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भूण सूत्र]
४४७ (४७७) हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा; सुत्तत्थं वियाणइ जे स
भिक्खू ॥१०-१५॥ (४७८) उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए । कयविक्कयसंनिहिओ विरए;
सव्वसंगावगए अ जे स भिक्खू ॥१०-१६॥ (४७८) अलोल-भिक्खू न रसेसु गिज्झे(द्धे), उंछं चरे
जीविअ नाभिकंखे । इड्डिं च सकारण-पूअणं च,
चए ठिअप्पा अणिहे जे स भिक्ख ॥१०-१७॥ (४८०) न परं वएज्जासि 'अयं कुसीले', जेणन कुप्पेज न तं वएज्जा। जाणिय पत्तेयं पुण्णपावं;
अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥१०-१८॥ (४८१) न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता;
धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥१०-१९॥ (४८२) पवेअए अज्जपयं महामुणी, धम्मे ठिओ ठावयइ
परं पि । निक्खम्म वज्जेज्ज कुसीललिंगं;
न आवि हासं कुहए जे स भिक्खू ।।१०-२०|| (४८3) तं देहवासं असुइं असासयं, सया चए
निच्चहिअद्विअप्पा । छिदित्तु जाईमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई-ति बेमि ॥१०-२१॥
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