Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 486
________________ - - भूण सूत्र] (४८५) जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं ।। सव्वधम्मपरिभट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ।।चू० १-२॥ (४८६) जया अवंदिमो होइ, पच्छा होइ अबंदिमो। देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पइ ॥चू०१-३॥ (४८७) जया अ पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो। राया व रज्जपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ।।चू०१-४॥ (४८८) जया अ माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो । सिद्रिव्व कब्बडे छहो, स पच्छा परितप्पइ ॥चू०१-५॥ (४८८) जया अ थेरओ होइ, समइकंतजुव्वणो । मच्छ व्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पइ ।चू०१-६॥ (४८०) जया अ कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहि विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥चू०१-७॥ (४८१) पुत्तदारपरीकिण्णो. मोहसंताण-संतओ। पंकोसनो जहानागो, स पच्छा परितप्पइ चू०१-८॥ (४८२) अज्ज आहं गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुओ। जइऽहं रमंतो परिआए, सामण्णे जिणदेसिए ।।चू०१-९॥ (४८) देवलोगसमाणो अ, परिआओ महेसिणं । रयाणं अश्याणं च, महानरयसारिसो ॥चू० १-१०॥ (४८४) अमरोवमं जाणिय सुक्खमुत्तमं, स्याण परिआइ तहारयाणं । निरओवमं जाणिअ दुक्खमुत्तमं; रमिज्ज तम्हा परिआइ पंडिए ।चू० १-११॥ ૨૯ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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