Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 476
________________ - भूण सूत्र] ४३८ दीसति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा ॥९-२-६॥ (४२४) तहेव अविणीअप्पा, लोगंसि(मि) नरनारीओ। दीसति दुहमेहंता, छाया विगलितेंदिआ (पाठान्तरे-छाया ते विगलिंदिआ) ॥९-२-७॥ (४२५) दण्ड-सत्थपरिजुण्णा, असब्भवयणेहि य । कलुणा विवन्नछंदा, खुप्पिवासापरिगया॥९-२-८॥ (४२६) तहेव सुविणीअप्पा, लोगसि नरनारीओ। दीसंति सुहमेहंता, इड्दि पत्ता महायसा॥९-२-९॥ (४२७) तहेव अविणीअप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसति दुहमेहता, आभिओगमुवट्टिआ॥९-२-१०॥ (४२८) तहेव सुविणीअप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा ॥९-२-११॥ (४२८) जे आयरिअउवज्झायाणं, सुस्सूसावयणंकरा । तेसिं सिक्खा पवड्दति, जलसित्ता इव पायवा ॥१२॥ (४३०) अप्पणट्ठा परट्ठा वा, सिप्पा णेउणिआणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा, इहलोगस्स कारणा॥९-२-१३॥ (४७१) जेण बंधं वहं घोरं, परिआवं च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छंति, जुत्ता ते ललिइंदिआ॥२-१४॥ (४७२) तेऽवि तं गुरुं पूअंति, तस्स सिप्पस्स कारणा । सकारंति नमसंति, तुट्ठा निदेसवत्तिणो ॥९-२-१५॥ (४33) किं पुण जे सुअग्गाही, अणंतहिअकामए। आयरिआ जंवए भिक्खू , तम्हा तं नाइवत्तए ॥२-१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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