Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 474
________________ भूण सूत्र] ४३७ (४०७) सिआ हु से पावय नो डहिज्जा, आसीविसो वा कुविओ न भक्खे । सिआ विसं हालहलं न मारे, न आया]वि मुक्खो गुरुहीलणाए ॥९-१-७॥ (४०८) जो पव्वयं सिरसा भित्तुमिच्छे, सुत्तं व सीहं पडिबोहइज्जा । जो वा दए सत्तिअग्गे पहारं, एसोवमाऽऽसायणया गुरूणं ॥९-१-८॥ (४०८) सिआ हु सीसेण गिरिपि भिंदे, सिआ हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिआ न भिंदिज्ज व सत्तिअग्गं, न आ(या)वि मुक्खो गुरुहीलणाए ॥९-१-९॥ (४१०) आयरियपाया पुण अप्पसन्ना, अबोही आसायण नस्थि मुक्खो। तम्हा अणाबाहसुहाभिकंखी, गुरुप्पसायाभिमुहो रमिज्जा ॥९-१-१०॥ (४११) जहाहिअग्गी जलणं नमसे, नाणाहूईमंतपयाभिसित्तं । एवायरिअंउवचिट्ठइजा, अणंतनागोवगओऽवि संतो॥ (४१२) जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्संतिए वेणइयं पउंजे। सकारए सिरसा पंजलीओ, कायग्गिरा भो ! मणसा अनिचं ॥९-१-१२॥ (४१३) लज्जा-दया-संजम-बंभचेरं, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेऽहं गुरू सययं पूययामि ॥९-१-१३॥ (४१४) जहा निसन्ते तवणचिमाली, पभासई केवलभारहं तु । एवायरिओ सुअसीलबुद्धिए, विरायई सुरमज्झे व इंदो॥ ॥९-१-१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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