Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 465
________________ ४२८ { દશ વૈકાલિક ( १७ ) तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज्जत्ति नो वए । नावाहिं तारिमाउत्ति, पाणिपिञ्जत्ति नो वए ॥७-३८॥ ( ३१८) बहुवाडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा । बहुवित्थडोदगा आवि, एवं भासिज पनवं ॥ ७ - ३९॥ ( ३१८ ) तहेव सावज्जं जोगं, परस्सट्ठाए निट्ठिअं । कीरमाणं ति वा नच्चा, सावज्जं न लवे मुणी ॥ ७ - ४० ॥ (३२० ) सुकडिति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज्जं वजए मुणी ॥७-४१ ॥ ( ३२१) पयत्तपक्कत्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्नत्ति व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउअं, पहारगाढत्ति व गाढमालवे ॥७-४२॥ (३२२) सव्बुक्कसं परग्धं वा, अउलं नत्थि एरिसं । अविक्कीअमवत्तव्यं, अविअत्तं चैव नो वए ॥७-४३ ॥ (323) सव्यमेअं वइस्सामि, सव्वमेअं ति नो वए । अणुवी सव्वं सव्वत्थ, एवं भासिज्ज पन्नवं ॥ ७-४४॥ (३२४) सुक्कीअं वा सुविक्कीअं, अकिज्जं किज्जमेव वा । इमं गिव्ह इमं मुंच, पणीअं नो विआगरे ॥७-४५॥ ( ३२५) अपग्धे वा महग्घे वा, कए वा विकए विवा । पणिअहे समुप्पन्ने, अणवज्जं विआगरे ||७ - ४६ ॥ (३२६) तहेवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा । सय चिट्ठ वयाहित्ति, नेवं भासिज पनवं ॥ ७-४७॥ (३२७) बहवे इमे असाहू, लोए बुच्चंति साहुणो । न लवे असाहुं साहुति, साहुं साहुति आलवे ॥७-४८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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