Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 463
________________ [ દશ વૈકાલિક (२८५) हले हलेत्ति अन्नित्ति, भद्दे सामिणि गोमिणि । होले गोले वसुलित्ति, इत्थिअं नेवमालवे ॥७-१६।। (२८६) नामधिज्जेण णं बूआ, इत्थीगुत्तेण वा पुणो।। जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज वा ॥७-१७॥ (२८७) अज्जए पज्जए वा वि, बप्पो चुल्लपिउत्ति अ । माउलो भाइणिज त्ति, पुत्ते णत्तुणिअ त्ति अ॥७-१८॥ (२८८) हे हो हलित्ति अन्नित्ति, भट्टे सामिअ गोमि । होल गोल वसुल त्ति, पुरिसं नेवमालवे ॥७-१९।। (२८८) नामधिज्जेण णं बुआ, पुरिसगुत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज वा ॥७-२०॥ (3००) पंचिंदिआण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुमं ।। जाव णं न विजाणिजा, ताव जाइत्ति आलवे ॥७-२१॥ (3०१) तहेव माणुसं पसु, पक्विं वा वि सरीसवं । थूले पमेइले वझे, पायमित्ति अ नो वए ॥७-२२॥ (३०२) परिवूढत्ति णं बूआ, बुआ उवचिअ त्ति अ । संजाए पीणिए वा वि, महाकायत्ति आलवे ॥७-२३॥ (303) तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा गोरहगत्ति अ । वाहिमा रहजोगित्ति, नेवं भासिज पन्नवं ॥७-२४|| (3०४) जुवं गवित्ति णं बूआ, घेणुं रसदय ति अ । रहस्से महल्लए वा वि, वए संवहणि त्ति अ॥७-२५॥ (3०५) तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि अ । रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज्ज पन्नवं ।।७-२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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