Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad
View full book text
________________
મૂળ સૂત્ર]
( २८४ ) तिपि तहामुत्ति, जं गिरं भासए नरो ।
तम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुणं जो मुसं वए ? ॥७-५॥ (२८५) तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वा णे भविस्सइ । अहं वाणं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ || ७-६ ॥ (२८६) एवमाई उ जा भासा, एसकालंमि संकिआ ।
संपयाईअम वा, तंपि धीरो विवज्जए ॥७-७॥ (२८७) अईअंभि अ कालंमि, पच्चुप्पण्णमणागए ।
जमहं तु न जाणिजा, एवमेअं ति नो वए ॥ ७-८ ॥ (२८८) अईअंमि अ कालंमि, पच्चुप्पण्णमणा गए ।
?
जत्थ संका भवे तं तु एवमेअं ति नो वए ॥ ७-९ ॥ (२८८) अईअंमि अ कालंमि, पच्चुप्पण्णमणा गए ।
निस्संकिअं भवे जं तु, एवमेअं तु निद्दिसे ॥७-१०॥ (२८०) तहेव फरुसा भासा, गुरुभूओवघाइणी ।
सच्चा विसा न वक्तव्वा, जओ पावस्स आगमो ॥७ - ११ ॥ ( २८-१) तहेव काणं काणेत्ति, पंडगं पंडगेत्ति वा ।
वाहिअं वा वि रोगित्ति, तेणं चोरे ति नो वए ॥७-१२ ॥ (२८२) एएणऽन्ने अहेणं, परो जेणुवहम्मद |
आयार - भावदोसन्नू, न तं भासिज पन्नवं ॥ ७-१३॥ (२८-३) तहेव होले गोलित्ति, साणे वा वसुलित्ति अ ।
दम दुहए वा वि, नेवं भासिज्ज पन्नवं ॥ ७-१४॥ (२८४) अजिए पजिए वा वि, अम्मो माउसिअत्ति अ । पिउस्सिए भायणिञ्जत्ति, धूए णत्तुणिअत्ति अ ॥७ - १५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
૪૫
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494