Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 454
________________ - भूण सूत्र ४१७ (१८९) निच्चुग्विग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई । तारिसो मरणंते वि, न आराहेइ संवरं ॥२-३९॥ (२००) आयरिए नाराहेइ, समणे आवि तारिसे । गिहत्था विणं गरिहंति, जेण जाणंति तारिस ॥२-४०॥ (२०१) एवं तु अगुणप्पेही, गुणाणं च विवज्जओ। तारिसो मरणते वि, ण आराहेइ संवरं ॥२-४१॥ (२०२) तवं कुब्वइ मेहावी, पणीअं वज्जए रसं । मज्जप्पमायविरओ, तवस्सी अइउक्कसो ॥२-४२॥ (२०3) तस्स पस्सह कल्लाणं, अणेगसाहुपूइअं। विउलं अत्थसंजुत्तं, कित्तइस्सं सुणेह मे ॥२-४३॥ (२०४) एवं तु स गुणप्पेही, अगुणाणं विवज्जओ। तारिसो मरणंते वि, आराहेइ [अ] संवरं ॥२-४४॥ (२०५) आयरिए आराहेइ, समणे आवि तारिसे । गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥२-४५॥ (२०६) तवतेणे वयतेणे, रूवतेणे य जे नरे। __ आयारभावतेणे अ, कुव्वइ देवकिविसं ॥२-४६॥ (२०७) लभ्रूण वि देवत्तं, उववन्नो देवकिदिवसे । तत्थावि से न याणाइ, किं मे किच्चा इमं फलं ॥२-४७॥ (२०८) तत्तो वि से चइत्ताणं, लब्मिहि एलमूअकं । ___ नरयं तिरिक्खजोणिं वा, बोही जत्थ सुदुल्लहा ॥२-४८॥ (२०८) एअंच दोसं दट्टणं, नायपुत्तेण भासि। अणुमायं पि मेहावि, मायामोसं विवज्जए॥२-४९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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