Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 440
________________ મૂળ સૂત્ર] (५०) जया मुंडे भवित्ता णं, पव्वइए अणगारिअं । तया संवरमुकि, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥४-१९॥ (५१) जया संवरमु किटं, धम्मं फासे अणुत्तरं । तथा घुणइ कम्मरयं, अबोहिकलसं कडं ॥४-२०॥ (५२ ) जया धुणइ कम्मरयं, अवोहिकलसं कडं । तया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छ ॥४-२१॥ ( 43 ) जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥४-२२॥ (५४) जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली । तथा जोगे निरंभित्ता, सेलेसिं पडिवज्जइ ॥ ४ - २३ ॥ (५५) जया जोगे निरुंभित्ता, सेलेर्सि पडिवज्जइ । तया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धि गच्छइ नीरओ ॥४-२४॥ (५६) जया कम्मं खवित्ता, णं, सिद्धिं गच्छ नीरओ । तया लोगमत्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासओ ॥४-२५॥ (५७) सुहसायगस्स समणस्स, सायाउलगस्स निगामसाइस्स | उच्छोलणापहोअस्स, दुल्लहा सुगई तारिसगस्स ||४- २६॥ (५८) तवोगुणपहाणस्स, उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगई तारिसगस्स ||४-२७॥ (५८) पच्छावि ते पयाया, खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई | जेर्सि पिओ तवो संजमो य, खंती य बंभचेरं च ॥४-२८॥ (१०) इच्चेअं छज्जीवणियं, सम्मद्दिट्ठी सया जए । Jain Education International ४०३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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