Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad
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[ દશ વેકાલિક (१६६) सइ काले चरे भिक्खू !, कुज्जा पुरिसकारिअं।
अलाभु त्ति न सोइज्जा, तवु त्ति अहिआसए ॥२-६॥ (१६७) तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया।
तं उज्जुन गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे ॥२-७॥ (१६८) गोअरग्गपविट्ठो अ, न निसीइज्ज कत्थई ।
कहं च न पबंधिज्जा, चिद्वित्ताण व संजए ॥२-८॥ (१६८) अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वा वि संजए।
अवलंबिया न चिद्विज्जा, गोअरग्गगओ मुणी॥२-९॥ (१७०) समणं माहणं वा वि, किविणं वा वणीमगं ।
उवसंकमंतं भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए ॥२-१०॥ (१७१) तमइक्कमित्तु न पविसे, न चिट्टे चक्खुगोअरे ।
एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठिज्ज संजए ॥२-११॥ (१७२) वणीमगस्स वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा।
अप्पत्तिअंसिया हुज्जा, लहुत्तं पवयणस्स वा॥२-१२॥ (१७३) पडिसेहिए व दिन्ने वा, तओ तम्मि नियत्तिए ।
उवसंकमिज्ज भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए ॥२-१३॥ (१७४) उप्पलं पउमं वा वि, कुमुअं वा मगदंतिअं।
अन्नं वा पुष्फसच्चित्तं, तं च संलुंचिआ दए ॥२-१४॥ (१७५) तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पि ।
दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥२-१५।। (१७६) उप्पलं पउमं वा वि, कुमुअं वा मगदंति ।
अन्नं वा पुष्फसच्चित्तं, तं च सम्मदिआ दए ।॥२-१६॥
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