Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad
View full book text
________________
-
-
..
४०५
भूग सूत्र] (७०) अणायणे चरंतस्स, संसग्गीए अभिक्खणं ।
होज वयाणं पीला, सामन्नंमि य संसओ ॥१-१०॥ (७१) तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
वज्जए वेससामंतं, मुणी एगंतमस्सिए ॥१-११॥ (७२) साणं सूयं (सूइअं) गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं ।
संडिब्भं कलहं जुद्धं, दूरओ परिवजए ॥१-१२॥ (७३) अणुन्नए नावणए, अपहिठे अणाउले ।
इंदियाणि जहाभागं, दमइत्ता मुणी चरे ॥१-१३॥ (७४) दवदवस्स न गच्छेजा, भासमाणो अ गोअरे ।
हसंतो नाभिगच्छिज्जा, कुलं उच्चावयं सया ॥१-१४॥ (७५) आलोअंथिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि अ ।
चरंतो न विनिज्झाए, संकट्ठाणं विवजए ॥१-१५॥ (७६) रन्नो गिहवईणं च, रहस्सारक्खियाण य ।
संकिलेसकरं ठाणं, दूरओ परिवजए ॥१-१६॥ (७७) पडिकुठं कुलं न पविसे, मामगं परिवजए ।
अचिअत्तं कुलंन पविसे, चिअत्तं पविसे कुलं॥१-१७॥ (७८) साणीपावारपिहिअं, अप्पणा नावपंगुरे ।
कवाडं नो पणुल्लिजा, उग्गहंसि अजाइआ ॥१-१८॥ (७८) गोअरग्गपविट्ठो य, वच्चमुत्तं न धारए ।
ओगासं फासु नचा, अणुन्नविय चोसिरे ॥१-१९॥ (८०) नीयदुवारं तमसं, कुट्टगं परिवजए ।
अचखुविसओ जत्थ, पाणा दुष्पडिलेहगा ॥१-२०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494