Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra
Author(s): Punyavijay, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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१०४
महानिसीह-सुय-खंधं
अह पंचमुट्ठियं लोयं जावाऽऽढवइ महायसो। सविणयं देवया तस्स, रयहरणं ताव ढोयई ॥१५९|| उग्गं कहें तवच्चरणं तस्स दलूण ईसरो। लोओ पूयं करेमाणो, जाव उ गंतूण पुच्छई ॥१६०॥ 'केण तं दिक्खिओ, कत्थ उप्पण्णो, को कुलो तव । सुत्तत्थं कस्स पामूले सासियं हो समज्जियं' ? ॥१६१।। सो पच्चेगबुद्धो जा सव्वं तस्स वि वागरे । जाई कुलं दिक्खा सुत्तं अत्थं जह य समज्जियं ॥१६२।। तं सोऊण अहण्णो सो इमं चिंतेइ गोयमा !। अलिया अणारिओ एस, लोगं डंभेण परिमुसे ॥१६३।। ता जारिसमेस भासेइ तारिसं सो वि जिणवरो। ण किंचेत्थ वियारेणं तुण्हिक्के ई वरं ठिए॥१६४|| अहवा णहि णहि सो भगवं! देवदाणव-पणमिओ। मणोगयं पि जं मझं तं पि छिण्णेज्ज संसयं ॥१६५|| तावेस जो होउ सो होउ, किं वियारेण एत्थ मे ? | अभिणंदामीह पव्वज्जं सव्व-दुक्ख-विमोक्खणिं ॥१६६।। ता पडिगओ जिणिंदस्स सयासे जा तं ण अक्खई। भवणेसं जिणवरं, तो वी गणहरं आसीय टिओ॥१६७|| परिनिव्वुयम्मि भगवंते, धम्म-तित्थंकरे जिणे। जिणाभिहियं सुत्तत्थं, गणहरो जा परूवती ॥१६८॥ तावमालावगं एयं, वक्खाणम्मि समागयं । 'पुढवी काइगमेगं जो वावाए सो असंजओ' ॥१६९।। ता ईसरो विचिंतेइ ‘सुहुमे पुढविकाइए। सव्वत्थ उद्दविज्जंति, को ताई रक्खिउं तरे ? ॥१७०।। हलुईकरेइ अत्ताणं एत्थं एस महायसो। असद्धेयं जणे सयले किमटेयं पवक्खई ? ॥१७१।। अच्चंत-कडयडं एयं, वक्खाणं तस्स वी फुडं। कंठसोसो परं लाभे, एरिसं कोऽणुचिट्ठए ? ॥१७२।। ता एवं विप्पमोत्तूणं, सामण्णं किंचि मज्झिमं । जं वा तं वा कहे धम्म, ता लोओऽम्हाणाउट्ठई ॥१७३।। अहवा हा हा अहं मूढो, पाव-कम्मी णराहमो ! । णवरं जइ णाणुचिट्ठामि, अण्णोऽणुचेट्टती जणो ॥१७४।। जेणेयमणंत-नाणीहिं, सव्वण्णूहिं पवेदियं । 'जो एयं अण्णहा वाए तस्स अट्ठो ण बज्झई' ॥१७५।। ताहमेयस्स पच्छित्तं, धोरमइदुक्करं चरं । लहुँ सिग्धं सुसिग्घयरं, जावमच्चू ण मे भवे ॥१७६।।
१ वियागरे जे.। Jain Education International
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