Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra
Author(s): Punyavijay, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 218
________________ महानिसीह-सुय-खंधं १३७ जह पंच-लोयपाले य सत्ताधम्मे य जाणए। तहाऽऽ लोएमि हं सव्वं तिलमत्तं पि ण निह्नवं ॥३१॥ तत्थेव जं पायच्छित्तं गिरिवरगुरुयं पि आवए । तमणुच्चरेमि दे सुद्धिं जह पावे झत्ति विलिज्जए ॥३२।। मरिऊणं नरय-तिरिएसुं कुंभीपाएसु कत्थई । कत्थइ करवत्त-जंतेहिं कत्थइ भिण्णो हु सूलिए ॥३३॥ घंसणं घोलणं कहिम्मि कत्थई छेयण-भेयणं । बंधणं लंघणं कहिम्मि कत्थइ दमण-मंकणं ॥३४॥ नत्थणं वाहणं कहिम्मि कत्थइ वहण-तालणं । गुरु-भारक्कमणं कहिंचि कत्थइ जमलार-विंधणं ॥३५॥ उर-पट्ठि-अट्ठि-कडि-भंगं पर-वसो तण्हं-छुहं । संतावुव्वेग-दारिदं विसहीहामि पुणो विहं ॥३६।। [५३] ता इहइं चेव सव् पि निय-दुच्चरियं जह-ट्ठियं । आलोएत्ता निंदित्ता गरहित्ता पायच्छित्तं चरित्तु णं ॥३७।। निद्दहेमि पावयं कम्मं झत्ति संसार-दुक्खयं । अब्भुट्टित्ता तवं घोरं-धीर-वीर-परक्कमं ॥३८।। अच्चंत-कडयडं कहें दुक्करं दुरणुच्चरं । उग्गुग्गयरं जिणाभिहियं सयल-कल्लाण-कारणं ॥३९॥ पायच्छित्त-निमित्तेण पाण-संघार-कारयं । आयरेणं तं तवं चरिमो जेणुब्भे सोक्खई तणुं ॥४०॥ कसाए विहली कट्ट इंदिए पंच-निग्गहं। मणोवई काय-दंडाणं निग्गहं धणियमारभं ॥४१।। आसव-दारे निरंभित्ता चत्त-मय-मच्छर-अमरिसो। गय-राग-दोस-मोहो हं निसंगो निप्परिग्गहो ॥४२।। निम्ममो निरहंकारो सरीरे अच्चंत-निप्पिहो। महव्वयाइं पालेमि निरइयाराई निच्छिओ ॥४३॥ हंडी हा अहण्णो हं पावो पाव-मती अहं । पाविट्ठो पाव-कम्मो हं पावाहमायरो अहं ॥४४|| कुसीलो भट्ट-चारित्ती भिल्लसूणोवमो अहं । चिलातो निक्किवो पावी कूर-कम्मीह निग्घिणो ॥४५॥ इणमो दुल्लभं लभिउं सामण्णं नाण-दंसणं । चारित्तं वा विराहेत्ता अनालोइय निंदिया ॥४६॥ १दसण जे. भो ला.। २ हा धी अहं रवं.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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