Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra
Author(s): Punyavijay, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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महानिसीह-सुय-खंधं
१४१
आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो। उत्तम ठाणम्मि ठिओ सावज्ज मा भणिज्जासु ॥८८॥ आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो। लोयटेण वि भूई गहिया गिहि उक्खिविउ ऽ दिन्ना ॥८९॥ आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो। जो इत्थिं संलवेज्जा गोयमा ! कत्थ स सुज्झिही ? ॥९॥ आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त नीसल्लो। चोद्दस-धम्मुवगरणं उर्ल्ड मा परिग्गरं कुज्जा ॥९१।। तेसिं पि निम्ममत्तो अमुच्छिओ अगढिओ दढं हविया।
अह कुज्जा उ ममत्तं ता सुद्धी गोयमा ! नत्थि ॥९२।। किंबहुणा ? गोयमा ! एत्थ दाऊण आलोयणं । रयणीए आविए पाणं कत्थ गंतुं स सुज्झिही ? ॥९३।।
[६२] आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त नीसल्लो। छाइक्कमे ण रक्खे जो कत्थ सुद्धिं लभेज्ज सो ? ॥९४।। अप्पसत्थे य जे भावे परिणामे य दारुणे। पाणाइवायस्स वेरमणे एस पढमे अइक्कमे ॥९५।। तिव्व-रागा य जा भासा निट्ठर-खर-फरुस-कक्कसा। मुसावायस्स वेरमणे एस बीए अइक्कमे ॥९६।। उग्गहं अजाइत्ता अचियत्तम्मि अवगहे। अदत्तादाणस्स वेरमणे एस तइए अइक्कमे ॥९७।। सदा रूवा रसा गंधा फासाणं पवियारणे। मेहुणस्स वेरमणे एस चउत्थाइक्कमे ॥९८॥ इच्छा मुच्छा य गेही य कंखा लोभे य दारुणे। परिग्गहस्स वेरमणे पंचमगे साइक्कमे ॥९९।। अइमित्ताहारहोइत्ता सूर-खेत्तम्मि संकिरे । राई-भोयणस्स वेरमणे एस छढे अइक्कमे ॥१००॥ आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त नीसल्लो। जयणं अयाणमाणो भव-संसारे भमे जहा सुसढो ।।
[६३] भयवं! को उण सो ससढो ? कयरा वा सा जयणा? जं अजाणमाणस्स णं तस्स आलोडय-निंदिय गरहिओ वि कय-पायच्छित्तस्सा वि संसारं णो विणिट्ठियं ति ? । 'गोयमा ! जयणा नाम अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं सत्तरस-विहस्स णं संजमस्स चोद्दसण्हं भूय-गामाणं तेरसण्हं किरिया-ठाणाणं सबज्झन्भंतरस्स णं दुवालस-विहस्स णं तवोणुट्ठाणस्स दुवालसाणं, भिक्खू-पडिमाणं, दसविहस्सणं समणधम्मस्स, णवण्हं चेव बंभगुत्तीणं, अट्ठण्हं तु पवयण-माईणं, सत्तण्हं चेव पाणपिंडेसणाणं, छण्हं तु जीवनिकायाणं, पंचण्हं तु महव्वयाणं, तिण्हं तु चेव गुत्तीणं । जाव णं तिण्हमेव सम्मइंसण-नाण-चरित्ताणं तिण्हं तु भिक्खू कंतार-दुब्भिक्खायंकाईसु
णं सुमहासमुप्पन्नेसु अंतोमुहुत्तावसेस-कंठग्गय-पाणेसुं पिणं मणसा वि उ खंडणं विराहणं ण करेजण कारवेज्जा Jain Education International
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