Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra
Author(s): Punyavijay, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 203
________________ १२२ महानिसीह-सुय-खंधं ॐ." सीलंग-सहस्स अट्ठारसण्ह धरणे समोत्थय-क्खंधो। छत्तीसायारुक्कंठ-निट्ठियासेस'-मिच्छत्तो ॥१४॥ पडिवज्जे पव्वज्जं विमुक्क-मय-माण-मच्छरामरिसो। निम्मम-निरहंकारो, विहिणेवं गोयमा ! विहरे ॥१५॥ विहग इवापडिबद्धो उज्जुत्तो नाणं-दसण-चरित्ते। नीसंगो घोर-परीसहोवसग्गाई पजिणंतो ॥१६।। उग्गाभिग्गह-पडिमाइ राग-दोसेहिं दूरतर मुक्को रोद्दट्टज्झाण-विवज्जिओ य विगहासु य असत्तो ॥१७॥ जो चंदणेण बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे । संथुणइ जो अ निंदइ सम-भावो हुज्ज दुण्हं पि ॥१८॥ एवं अणिगूहिय बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमो, सम-तण-मणि-लिट्ठ-कंचणोवेक्को ॥१९॥ परिचत्त-कलत्त-पुत्त-सुहि-सयण-मित्त-बंधवधण-धण्ण-सुवण्ण-हिरण्ण-मणी-रयण-सार-भंडारो ॥२०॥ अच्चंत-परम-वेरग्ग-वासणाजणिय-पवर-। सुहज्झवसाय-परम-धम्म-सद्धा-परो ॥२१।। अकिलिट्ठ-णिक्कलुस-अदीण-माणसो य वय-नियम-नाण-चरित्त-। तवाइ-सयल-भुवणेक्क-मंगल-अहिंसा-लक्खण-खंताइ-दस-विह-धम्माणुट्ठाणेकंत बद्ध-लक्खो , ॥२२॥ सव्वावस्सग-तक्काल-करण-सज्झाय-झाणं आउत्तो, संखाईय-अणेग-कसिण-संजम-पएसु अविखलिओ, संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पाव-कम्मो, अणियाणो माया-मोस-विवज्जिओ, साहू वा साहूणी वा एवं गुण-कलिओ, जइ कह वि पमाय-दोसेणं असई कहिंचि कत्थइ वाचा इ वा, मणसा इ वा ति-करण-विसुद्धीए सव्व-भाव-भावंतरेहिं चेव संजममायरमाणो असंजमेणं छलेज्जा, तस्स णं विसोहि-पयं पायच्छित्तमेव । तेणं पायच्छित्तेणं गोयमा ! तस्स विसुद्धिं उवदिसिज्जा, न अण्णह त्ति । तत्थ णं जेसुं जेसुं ठाणेसुं जत्थ जत्थ जावइयं पच्छित्तं तमेव निट्टंकियं भण्णइ। ‘से भयवं ! के णं अटेणं भण्णइ जहा णं-तं एव निट्टंकियं भण्णइ ?' गोयमा ! अणंतराणंतर-क्कमेणं इनमो-पच्छित्त- सुत्ता, अणेगे भव्व-सत्ता चउगइ-संसार-चारगाओ बद्ध-पुट्ठ-निकाइय-दुब्विमोक्ख घोर-पारद्धकम्म-नियडाइं संचुण्णिऊण अचिरा विमुच्चिहिंति । अण्णं च इणमो पच्छित्त-सुत्तं अणेग- गुणगणाइण्णस्स दढ-व्वय-चरित्तस्स, एगंतेण जोगस्स एव विवक्खिए पएसे चउकण्णं पन्नवेयव्वं, णो छक्कण्णं । तहा य-जस्स जावइयेणं पायच्छित्तेणं परम-विसोही भवेज्जा, तं तस्स णं अणुयट्टणा-विरहिएणं धम्मेक्क-रसिएहिं वयणेहिं जह-ट्ठियं अणुणाहियं तावाइयं चेव पायच्छित्तं पयच्छेज्जा । एएणं अटेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा ! तमेव निर्दृकियं पायच्छित्तं भण्णइ। १ निट्टविया खं. सं. ला. । २ सममण हे. । ३ केक्को ख / चेव आ. | ४ कियं पच्छित्तं खं. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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