Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra
Author(s): Punyavijay, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 195
________________ ११४ महानिसीह-सुय-खंधं अ.६ (४) घोरंधयार-मिच्छत्त-तिमिस-तम-तिमिर-णासण, (५) लोगालोग-पगासगर, (६) मोह-वइरिनिसुंभण, (७) दुरुज्झिय-राग-दोस-मोह-मोस-सोग संत सोम सिवंकर । अतुलिय, बल विरिय माहप्पय (८) तिहुयणेक्क महायस, (९) निरुवमरूव अणन्नसम सासयसुह-मुक्ख-दायग। (१०) सव्वलक्खणसंपुन्न, (११) तिहुयणलच्छिविभूसिय । भयवं! परिवाडीए सव्वं जं किंचि कीरई। अथक्के हुंडि-दुद्धेणं कज्जतं कत्थ लब्भइ ? ||३०६॥ सम्मइंसणमेगम्मि बितियं जम्मे अणुव्वए। तइयं सामाइयं जम्मे, चउत्थे पोसहं करे ॥३०७।। दुद्धरं पंचमे बंभ, छटे सचित्त-वज्जणं । एवं सत्तट्ठ-नव-दसमे जम्मे उद्दिट्टमाइयं ॥३०८।। चेच्चेक्कारसमे जम्मे, समण-तुल्ल-गुणो भवे। एयाए परिवाडिए संजयं किं न अक्खसि ? ॥३०९।। जं पुणो सोऊण मइविगलो बालयणो केसरिस्स व.। सदं गय-जुव तसिउँ-नासे-दिसोदिसिं ॥३१०॥ तं एरिस-संजमं नाह ! सुदुल्ललिया सुकुमालया। सोऊणं पि नेच्छंति, तणुट्ठीसुं कहं पुण? ॥३११॥ गोयम ! तित्थंकरे मोत्तुं, अन्नो दुल्ललिओ जगे। जइ अत्थि कोइ, ता भणउ अह णं सुकुमालओ ।।३१२॥ जेणं गब्भट्ठाणम्मि देविंदो अमयं अंगुठ्ठयं कयं । आहार देइ भत्तीए, संथवं सययं करे ॥३१३।। देव-लोग-चुए संते, कम्मासेणं जहिं घरे। अभिजाहिंति तहिं सययं, हीरण्ण-वुट्ठी य वरिस्सइ ॥३१४॥ गब्भावन्नाण तद्देसे ईति-रोगा य सत्तुणो। अणुभावेण खयं जंति जाय-मेत्ताण तक्खणे ॥३१५॥ आगंपियासणा चउरो देव-संघा महीधरे । अभिसेयं सव्विड्डीए काउंस-ट्ठामे गया ॥३१६।। 'अहो ! लावण्णं कंती दित्ती रूवं अणोवमं । जिणाणं जारिसं पाय-अंगुढग्गं, न तं इहं ॥३१७।। सव्वेसु देव-लोगेसु सव्व-देवाण मेलियं । कोडाकोडिगुणं काउं जइ वि उ ण्हाणिज्जए ॥३१८॥ अह जा अमर-परिग्गहिया णाण-त्तय-समण्णिया। कला-कलाव-निलया, जण-मणानन्दकारया ॥३१९।। १°लो यणो उब्वियइ ख. । २ सद्धं डगइ जउ इसिउं नासे सा./ सदं गय जव इसिउं तासे सु./ सद्दगय जुवइङ तासे सं.1३°णमइ विगलो वाल यणो उब्बियइ/ केरिसस्स व, सद्धं गय जुवइ सोंउ नासे दिसो दिसिं हे. । ४ तेऽणुद्धंसु सु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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