Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 9
________________ सम्मतिपत्र (भाषान्तर) श्री वीर निर्वाण सं० २४५८ असोज शुक्ला (पूर्णिमा ) १५ शुक्रवार लुधियाना मैंने और पंडितमुनि हेमचन्द्रजीने पंडितरत्नमुनिश्री घासीलालजीकी रची हुई उपासकदशांग सूत्रकी गृहस्थधर्मसंजीवनी नामक टीका पंडित मूलचंदजी व्याससे आद्योपान्त सुनी है। यह वृत्ति यथानाम तथागुणावली-अच्छी बनी-है। सच यह गृहस्थोंके तो जीवनदात्रीसंयमरूप जीवनको देनेवाली-ही है। टीकाकारने मूलसूत्र के भावको सरल रीतिसे वर्णन किया है, तथा श्रावकका सामान्य धर्म क्या है? और विशेष धर्म क्या हैं ? इसका खुलासा इस टीकामें अच्छे ढंगसे बतलाया है । स्याद्वादका स्वरूप कर्म-पुरुषार्थ-वाद और श्रावकको धर्मके अन्दर दृढ़ता किस प्रकार रखना, इत्यादि विषयोंका निरूपण इसमें भलीभाँति किया है। इससे टीकाकारकी प्रतिभा खूब झलकती है। ऐतिहासिक दृष्टि से श्रमण भगवान महावीर के समय जैनधर्म किस जाहोजलाली पर था? और वर्तमान समय जैनधर्म किस स्थितिमें पहुंचा है ? इस विषयका तो ठीक चित्र ही चित्रित कर दिया है! फिर संस्कृत जाननेवालोंको तथा हिन्दीभाषाके जाननेवालीको भी पुरा लाभ होगा, क्योंकि टीका संस्कृत है, उसकी सरल हिन्दी करदी गई है। इसके पढनेसे कर्ताकी योग्यताका पता लगता है कि वृत्तिकारने समझानेका कैसा अच्छा प्रयत्न किया है। टीकाकारका यह कार्य परम प्रशंसनीय है। इस सूत्रको मध्यस्थ भावसे पढने वालोंको परम लाभकी प्राप्ति होगी। क्या कहें श्रावकों (गृहस्थों ) का तो यह सूत्र सर्वस्व ही है, अतः टीकाकारको कोटिशः धन्यवाद दिया जाता है, जिन्होंने अत्यन्त परिश्रमसे जैनजनताके ऊपर असीम उपकार किया है। इसमें श्रावकके बारह नियम प्रत्येक पुरुषके पढने योग्य हैं, जिनके प्रभावसे अथवा यथायोग्य ग्रहण करनेसे आत्मा मोक्षका अधिकारी होता है ! तथा भवितव्यतावाद और पुरुषकार ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧Page Navigation
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