Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ बौद्ध साहित्य में अजातशत्रु का प्रसंग---- राजा श्रेणिक और अजातशत्रु (कूणिक) का यह प्रसंग बौद्धसाहित्य में भी मिलता है परन्तु दोनों में कुछ अन्तर है। बौद्धपरम्परा के अनुसार बैद्य ने राजा की बाहु का रक्त निकलवाकर महारानी के दोहद की पूर्ति की / महारानी को ज्योतिषी ने बताया कि यह पुत्र पिता को मारने वाला होगा अतः रानी उस गर्भस्थ शिशु को किसी भी प्रकार से नष्ट करने का प्रयास करने लगी। वह मन ही मन खिन्न थी कि इस बालक के गर्भ में प्राते ही पति के मांस को खाने का दोहद हुआ है, इसलिये इस गर्भ को गिरा देना ही श्रेयस्कर है। महारानी ने गर्भपात के लिए अनेक प्रयास किये पर वह सफन न हो सकी। जन्म लेने पर नवजात शिशु को राजा के कर्मचारी राजा के आदेश से महारानी के पास से हटा देते हैं, जिससे महारानी उसे मार न दे। कुछ समय के बाद महारानी को सौंपते हैं। पुत्रप्रेम से महारानी उसमें अनुरक्त हो जाती है। एक बार अजातशत्रु की अंगुली में फोड़ा हो गया। बालक वेदना से कराहने लगा जिससे कर्मकर उसे राज सभा में ले जाते हैं। राजा अपने प्यारे पुत्र की अंगुली मुख में रख लेता है, फोड़ा फूट जाता है। पुत्र प्रेम में पागल बना हुआ राजा उस रक्त और मवाद को निगल जाता है। अजातशत्रु जीवन के उषाकाल से ही महत्त्वाकांक्षी था। देवदत्त उसकी महत्त्वाकांक्षा को उभारता था। अतएव अपने पूज्य पिता को वह धूमगृह (लोहकर्म करने का गृह) में डलवा देता है। धूमगृह में कौशल देवी के अतिरिक्त कोई भी नहीं जा सकता था। देवदत्त ने अजातशत्र को कहा अपने पिता को पास्त्र से न मारें, उन्हें भूखे और प्यासे रखकर मारें / जब कौशल देवी राजा से मिलने को जाती तो उत्संग में भोजन छुपा कर ले जाती और राजा को दे देती। अजातशत्रु को ज्ञात होने पर उसने कर्मकरों से कहा-मेरी माता को उत्संग बांध कर मत जाने दो। तब महारानी जड़े में भोजन छिपाकर ले जाने लगी। उसका भी निषेध हुआ। तब वह सोने की पादुका में भोजन छुपा कर ले जाने लगी, जब उसका निषेध किया गया तो महारानी गन्धोदक से स्नान कर शरीर पर मधु का लेप कर राजा के पास जाने लगी। राजा उसके शरीर को चाट कर कुछ दिनों तक जीवित रहा / अजातशत्रु ने अन्त में अपनी माता को धूमगृह में जाने का निषेध किया / राजा श्रेणिक अब श्रोतापत्ति के सुख के आधार पर जीने लगा तो अजातशत्रु ने नाई को बुलाकर कहामेरे पिता के पैरों को तुम पहले शस्त्र से छील दो, उस पर नमकयुक्त तेल का लेपन करो और फिर खैर के अंगारे से उसे सेको। नाई ने वैसा ही किया जिससे राजा का निधन हो गया। जैन परम्परा की दष्टि से माता से पिता के प्रेम की बात को सुनकर कुणिक के मन में पिता की मृत्यू से पूर्व ही पश्चात्ताप हो गया था। जब कृणिक ने देखा-पिता ने आत्महत्या कर ली है तो वह मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ समय के बाद जब उसे होश आया तो वह फूट-फूटकर रोने लगा-मैं कितना पुण्यहीन हूँ, मैंने अपने पूज्य पिता को बन्धनों में बांधा और मेरे निमित्त से ही पिता की मृत्यु हुई है। वह पिता के शोक से संतप्त होकर राजगृह को छोड़कर चम्पा नगरी पहुंचा और उसे मगध की राजधानी बनाया। तुलनात्मक अध्ययन-- बौद्धदृष्टि से जिस दिन बिम्बिसार की मृत्यु हुई, उस दिन अजातशत्रु के पुत्र हुआ। संवादप्रदाताओं ने लिखित रूप से संवाद प्रदान किया। पुत्र-प्रेम से राजा हर्ष से नाच उठा। उसका रोम-रोम प्रसन्न हो उठा। उसे ध्यान पाया- जब मैं जन्मा था तब मेरे पिता को भी इसी तरह आह्लाद हना होगा। उसने कर्मकारों से [ 12] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org