Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 11
________________ कल्पना के लिए केवल इतना ही अवकाश है, आयुर्वेद, धनुर्वेद तथा अर्थशास्त्र का वेद से सम्बन्ध जोड़ने में महिमांकन मानते हुए ऐसा किया गया हो, ताकि बेद-संपृक्त समादर के ये भी कुछ भागी हो सके। जन मनीषियों का भी स्यात् कुछ ऐसा ही झकाव बना हो, जिससे वेदों के साथ उपवेदों की ज्यों उनको अंगों के साथ उपांगों की परिकल्पना सूझी हो। कल्पना-सौष्ठव, सज्जा-सौष्ठव से अधिक इसमें विशेष सारवत्ता परिदृष्ट नहीं होती। हाँ, स्थविर कृत अंगबाहों में से इन बारह को उपांग-श्रेणी में ले लिये जाने से औरों की अपेक्षा इनका महत्त्व समझा जाता है, सामान्यत: इनका अंगों से अन्य अंगबाह्यों की अपेक्षा कुछ अधिक सामीप्य मान लिया जाता है पर वस्तुतः वैसी स्थिति है नहीं। क्योंकि सभी अंग-बाह्यों का प्रामाण्य उनके अंगानुगत होने से है अतः अंगानुगति की दृष्टि से अंगबाह्यों में बहुत तारतम्य नहीं पाता। अनुसंधित्सुओं के लिए निश्चय ही यह गवेषणा का विषय है। अनुयोग अनुयोग शब्द व्याख्याक्रम, विषयगत भेद तथा विश्लेषण-विवेचन आदि की दृष्टि से विभाग या वर्गीकरण के अर्थ में है / आर्यरक्षितसूरि ने इस अपेक्षा से आगमों का चार भागों या अनुयोगों में विभाजन किया, जो इस प्रकार है 1. चरणकरणानुयोग-इसमें आत्मा के मूलगुण-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, संयम, आचार, व्रत, ब्रह्मचर्य, कषाय-निग्रह, तप, वैयावृत्त्य प्रादि तथा उत्तरगुण—पिण्डविशुद्धि, समिति, गुप्ति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रिय-निग्रह, अभिग्रह, प्रतिलेखन आदि का वर्णन है / . बत्तीस प्रागमों (अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य) में से प्राचारांग, प्रश्नव्याकरण-ये दो अंगसूत्र; दशवकालिकयह एक मूलसूत्र, निशीथ, व्यवहार, वृहत्कल्प तया दशाश्रुतस्कन्ध-ये चार छेदसूत्र तथा प्रावश्यक–यों कुल आठ सूत्रों का इस अनुयोग में समावेश होता है। 2. धर्मकथानुयोग-इसमें दया, अनुकम्पा, दान, शील, शान्ति, ऋजुता, मृदुता प्रादि धर्म के अंगों का विश्लेषण है, जिसके माध्यम मुख्य रूप से छोटे, बड़े कथानक हैं / धर्मकथानुयोग में ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्त कृद्दशा, अनुतरोपपातिकदशा एवं विपाक-ये पांच अंगसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावली, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका एवं वृष्णिदशा-ये सात उपांगसूत्र तथा उत्तराध्ययन~एक मूलसूत्र-यों कुल तेरह सूत्र समाविष्ट हैं। 3. गणितानुयोग-इसमें मुख्यतया गणित-सम्बद्ध, गणिताधृत वर्णन हैं। इस अनुयोग में सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति-इन तीन उपांगसूत्रों का समावेश है। 4. द्रव्यानुयोग-इसमें जीव, अजीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, प्रास्रव, संव, निर्जरा, पुण्य, पाप, बन्ध, मोक्ष प्रादि का सूक्ष्म, गहन विवेचन है। द्रव्यानुग में सूत्रकृत, स्थान, समवाय तथा व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती)-ये चार अंगसूत्र, जीवाभिगम, प्रज्ञापना-ये दो उपांग सूत्र तथा नन्दी एवं अनुयोग---ये दो मूलसूत्र-कुल पाठ सूत्र समाविष्ट हैं / ___ बारहवें अंग दृष्टिवाद में द्रव्यानुयोग का अत्यन्त गहन, सूक्ष्म, विस्तृत विवेचन है, जो आज प्राप्य नहीं है। [10] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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