Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र [१५] प्रज्ञापना उपांगसूत्र-४- हिन्दी अनुवाद पद-१-प्रज्ञापना सूत्र-१ जरा, मृत्यु और उभय से रहित सिद्धों को त्रिविध अभिवन्दन कर के त्रैलोक्यगुरु जिनवरेन्द्र श्री भगवान् महावीर को वन्दन करता हूँ। सूत्र-२ भव्यजनों को निवृत्ति करनेवाले जिनेश्वर भगवान् ने श्रुतरत्ननिधिरूप सर्वभाव-प्रज्ञापना का उपदेश दिया है। सूत्र - ३,४ वाचक श्रेष्ठवंशज ऐसे तेईसमें धीरपुरुष, दुर्धर एवं पूर्वश्रुत से जिनकी बुद्धि समृद्ध हुई है ऐसे मुनि द्वाराश्रुतसागर से संचित कर के उत्तम शिष्यगण को जो दिया है, ऐसे आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार हो । सूत्र-५ दृष्टिवाद के निःस्यन्द रूप विचित्र श्रुतरत्नरूप इस प्रज्ञापना-अध्ययन का श्रीतीर्थंकर भगवान् ने जैसा वर्णन किया है, मैं भी उसी प्रकार वर्णन करूँगा। सूत्र-६-९ (प्रज्ञापनासूत्र में छत्तीस पद हैं ।) १. प्रज्ञापना, २. स्थान, ३. बहुवक्तव्य, ४. स्थिति, ५. विशेष, ६. व्युत्क्रान्ति, ७. उच्छवास, ८. संज्ञा, ९. योनि, १०. चरम । ११. भाषा, १२. शरीर, १३. परिणाम, १४. कषाय, १५. इन्द्रिय, १६. प्रयोग, १७. लेश्या, १८. कायस्थिति, १९. सम्यक्त्व और २०. अन्तक्रिया । २१. अवगाहना-संस्थान, २२. क्रिया, २३. कर्म, २४. कर्म का बन्धक, २५. कर्म का वेदक, २६. वेद का बन्धक, २७. वेद-वेदक । २८. आहार, २९. उपयोग, ३०. पश्यत्ता, ३१. संज्ञी, ३२. संयम, ३३. अवधि, ३४. प्रविचारणा, ३५. वेदना एवं ३६. समुद्घात । सूत्र-१० प्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है। जीवप्रज्ञापना और अजीव प्रज्ञापना । सूत्र-११ वह अजीव-प्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है । रूपी-अजीव-प्रज्ञापना और अरूपी-अजीव-प्रज्ञापना । सूत्र-१२ वह अरूपी-अजीव-प्रज्ञापना क्या है ? दस प्रकार की है । धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्ति-काय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशा-स्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धाकाल । सूत्र-१३ वह रूपी-अजीव-प्रज्ञापना क्या है ? चार प्रकार की है । स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल । वे संक्षेप से पाँच प्रकार के हैं, वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत । जो वर्णपरिणत होते हैं, वे पाँच प्रकार के हैं । काले वर्ण के रूप में, नीले वर्ण के रूप में, लाल वर्ण के रूप में, पीले वर्ण के रूप में और शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत । जो गन्धपरिणत हैं, वे दो प्रकार के हैं-सुगन्ध के रूप में और दुर्गन्ध के रूप में परिणत । रसपरिणत पाँच प्रकार के हैं । तिक्त रस के रूप में, कटु रस के रूप में, कषाय रस के रूप में, अम्ल रस के रूप में और मधुर रस के रूप में परिणत । स्पर्शपरिणत आठ प्रकार के हैं, कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 5Page Navigation
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