Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे संकासा' अलकापुरीसंकाशा = कुबेरनगरीसदृशी ‘पमुइय पक्कीलिया' प्रमुदितप्रक्रीडिता 'पमुइय' प्रमुदिता:प्रमोदयुक्ताः, 'पकीलिया' प्रक्रीडिताः विविधक्रीडनपराः लोका यत्र सा, पच्चक्खं देवलोयभूया' प्रत्यक्षं देवलोकभूता प्रत्यक्षीभूतदेवलोकवत् प्रतीयमानेत्यर्थः ॥ २ ॥
मूलम्-तीसे गं बारवईए नयएि बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसांभाए रेवतगे नाम पवए होत्था, तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे णाणाविहगुच्छगुम्मलयावल्लिपरिगए हंसमिगमयूरकोंचसारसचक्कवायमयणसालकोइलकुलोववेए अणेगतडकडगवियरउज्झरयपवायपब्भारसिहरपउरे अच्छरगणदेवसंघचारणविज्जाहरमिहुणसंविचिन्ने निच्छच्चणए दसारवरवीरतेल्लोकबलवगाणं, सोमे सुभगे पियदसणे सुरूवे पासाईए ॥ सू०३॥ ____टीका-'तीसे थे' इत्यादि । तस्याः खलु द्वारावत्या नगर्या बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे 'रेवतगे' रवैतको नाम 'पव्वए' पर्वतः ‘होत्था ' आसीत् , स अलकापुरी ( कुबेर की नगरी जैसी सुन्दर होती है ठीक वैसी ही यह भी सुन्दर थी ( पमुइयपक्कीलिया) इस में निवास करनेवाले जन सदा हर्षित रहते थे और विविध प्रकार की क्रीड़ाओ में तत्पर रहते थे (पच्यक्ख देवलोयभूया ) इसलिये प्रत्यक्ष में यह नगरी देवलोक के समान प्रतीत होती थी। सूत्र "२” ।
'तीसेणं बारवईए' इत्यादि टीकार्थ-(तीसेणं बारवईए नयरीए बहिया) उस द्वारावती नगरी के बाहिर ( उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए रेवतगे नाप्न पव्वए होत्था ) उत्तर नवी सु१२ सय तेवी ४ ते नमरी ५ सु४२ ती. (पमुइयपक्कीलिया ) તેમાં રહેનારા નાગરિકે હમેશાં પ્રસન્ન રહેતા હતા, અને જાત જાતની રમત ( 1) मा व्यस्त २उता ता. (पच्चक्खं देवलोयभूया ) तथा ॥ नगरी प्रत्यक्ष वी ती ती. ॥ सूत्र “२" ॥
'तीसे णं वारवईए ' इत्यादि ॥
टार्थ-(तीसे ण बारवईए नयरीए बहिया) द्वारवती नगरीनी मार ( उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए रेवतगनामपवए, होत्था ) उत्तर पूर्व दिशामा मेट
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨