Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 16
________________ ज्ञाताधर्मकथाजस्त्रे ____ मूलम्-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स णायज्झयणस्स अयमहे पन्नत्ते, पंचमस्स गं भंते णायज्झयणस्स के अहे पण्णत्ते ? ॥ सू० १ ॥ टीका-'जइ णं' इत्यादि । यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता महावीरेण चतुर्थस्य ज्ञाताध्ययनस्य अयम्-उक्तरूपः, अर्थः प्रज्ञप्तः, पश्चमस्य खलु भदन्त ! ज्ञाताध्ययनस्य कोऽर्थः प्रज्ञप्तः इति । सर्व सुगमम् ॥ १॥ श्री सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिनमाह मूलम्--एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समयेणं बारवई नाम नयरी होत्था, पाईणपडीणायया उद्दीणदाहिणवित्थिन्ना नवजोयणवित्थिन्ना दुवालसजोयणायामा धणवइमइनिम्मिया चामीयर पवरपागारणाणामणिपंचवन्नकविसीसगसोहिया अलयापुरिसंकासा पमुइयपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोयभूया ॥सू०२॥ ____टीका-' एवं खलु ' इत्यादि । ' एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् _ 'जइणं भंते ! ' इत्यादि। टीकार्थ-(जइणं भंते ! ) हे भदंत ! यदि (समणेणं भगवया महा. वीरेणं) श्रमण भगवान महावीर ने ( चउत्थस्स णायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते) चतुर्थ ज्ञाताध्ययन का यह उक्त रूप अर्थ प्रज्ञप्त (प्ररूपित) किया है तो-(पंचमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते) पंचम ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? “१” ‘एवं खलु जंबू !' इत्यादि। टीकार्थ-(एवं खलु जंबू) हे जंबू ! तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार साथ-(जइण' भते !) 3 महन्त ! ( समणेणं भगवया महावीरेणं) श्रममावान महावीरे ( चउत्थस्स णायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते ) याथाशाताध्ययन प्रति म नि३पित यो छे, त्यारे (पंचमस्स णं भंते ! णायज्झ यणस्स के अट्टे पण्णत्ते) पां-यमा अध्ययननी ।। अर्थ मताव्येो छ ? । “सू.१॥ एवं खलु जीबू , ? त्या ॥ Custथ-(एवं खलु जंबू !) ! तमा प्रश्न या प्रमाण શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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