Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सु० २६-३९] संठाणे पडुश्च विविहा परूवणा गोयमा! वट्टे संठाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा-घणंवट्टे य, पयरवेट्टे य। तत्थ णं जे से पयरवट्टे से दुविधे पन्नत्ते, तं जहा-ओयपएसिए य, जुम्मपएसिए य। तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पंचपएसिए, पंचपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेजपएसोगाढे। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं बारसपएसिए, बारसपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेजपदेसोगाढे। ५ तत्थ णं जे से घणवट्टे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य। तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं सत्तपएसिए, सत्तपएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेन्जपएसोगाढे पन्नत्ते। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं बत्तीसपएसिए, बत्तीसपएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेजपएसोगाढे पन्नत्ते।
३८. तंसे णं भंते ! संठाणे कतिपएसिए कतिपएसोगाढे पन्नत्ते ? गोयमा ! तंसे णं संठाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—घणतंसे य पयरतंसे य । तत्थ णं जे से पयरतंसे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-ओयपएसिए य, जुम्मपएसिए य। तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसिए, तिपएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे पन्नत्ते । तत्थ णं जे से १५ जुम्मपएसिए से जहन्नणं छप्पएसिए, छप्पएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए असंखेजपएसोगाढे पन्नत्ते। तत्थ णं जे से घणतंसे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहाओयपदेसिए य, जुम्मपएसिए य। तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं पणतीसपएसिए पणतीसपएसोगाढे; उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तं चेव । तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं चउप्पएसिए चउप्पदेसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं २० अणंतपएसिए, तं चेव।
३९. चउरंसे णं भंते ! संठाणे कतिपदेसिए० पुच्छा। गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे पन्नत्ते, भेदो जहेव वट्टस्स जाव तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं नवपएसिए, नवपएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेजपएसोगाढे पन्नते। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं चउपएसिए, चउपएसोगाढे २५ पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तं चेव। तत्थ णं जे से घणचउरंसे से दुविहे
१. "घणवढे त्ति सर्वतः समं घनवृत्तं मोदकवत्" अवृ०॥ २. “पयरवट्टे त्ति बाहल्यतो हीनं तदेव प्रतरवृत्तं मण्डकवत्" अवृ०॥ ३. “ओयपएसिए त्ति विषमसङ्खयप्रदेशनिष्पन्नम्" अवृ०॥ ४. “जुम्मपएसिए त्ति समसङ्ख्यप्रदेशनिष्पन्नम्" अवृ०॥
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