Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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वियाहपण्णत्तिसुत्तं [सं० २५ उ०७ [सु. २३५. छत्तीसइमं अप्पाबहुयदारं-पंचषिहनियंठेसु अप्पाबहुयपरूषणं]
२३५. एएसि णं भंते ! पुलाग-बउस-पडिसेवणाकुसील-कसायकुसीलनियंठ-सिणायाणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा
नियंठा, पुलागा संखेज्जगुणा, सिणाया संखेजगुणा, बउसा संखेजगुणा, पडि५ सेवणाकुसीला संखेजगुणा, कसायकुसीला संखेन्जगुणा । [दारं ३६] । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ ।
॥२५ सते ६ उद्दे० ॥
।
. [सत्तमो उद्देसओ ‘समणा'] [सु. १-११. पढमं पण्णवणदारं-संजयभेयपरूषणं]
[सु. १-६. पंचभैया संजयातब्भेया य] १. कति णं भंते! संजया पन्नत्ता? गोयमा ! पंच संजया पन्नत्ता तं जहा-सामाइयसंजए छेदोवट्ठावणियसंजए परिहारविसुद्धियसंजए सुहुमसंपरायसंजए अहक्खायसंजए।
२. सामाझ्यसंजए णं भंते! कतिविधे पन्नत्ते १ गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, १५ तं जहा-ईत्तिरिए य, आवकहिए य।
३. छेदोवट्ठावणियसंजए णं० पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा -सातियारे य, निरतियारे य।
४. परिहारविसुद्धियसंजए० पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा -णिव्विसमाणए य, निन्विट्ठकाइए य। २० ५. सुहुमसंपराग० पुच्छा। गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संकिलिस्समाणए य, विसुज्झमाणए य।
६. अहक्खायसंजए० पुच्छा । गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहाछउमत्थे य, केवली य। १. अस्योद्देशकस्य षट्त्रिंशद्वारनामावगमार्थ दृश्यन्तामस्यैव शतकस्य षष्ठोद्देशप्रारम्भगतास्तिस्रो गाथाः ॥ २. सुद्धिसं जे०॥ ३. इत्तरि' मु०॥
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