Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयाये - 9/9/४/३७ (३७) लज्जमाणा पुढो पास अणगारा मोति एगे पवदमाणा जमिणं विरुवरुवेहिं सत्येहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्यं समारंभमाणे अन्ने अणेगरुवे पाणे विहिंसति तत्य सलु भगवता परिष्णा पवेइया इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाईमरण मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव अगणि-सत्यं समारंभइ अन्नेहिं वा अगणिसत्यं समारंभावेइ अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ तं से अहियाए तं से अयोहीए से तं संवुज्झमाणे आयाणीवं समुट्ठाए सोचा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहपेगेसि णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु निरए इच्चत्यं गढिए लोए जमिणं विरुवरुवेहिं सत्थेहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे अन्ने अणेगरुवे पाणे विहिंसति ।३७1-36 (३८) से वेमि-अप्पेगे अंघमटमे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमभे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए ] से बेमि-संति पाणा पुढवि-णिस्सिया तण-णिस्सिया पतणिस्सिया कट्टणिप्तिया गोमय-णिस्सिया कयवर-णिस्सिया संति संपातिमा पाणा आहच्च संपयंति अगणिं च खलु पुट्ठा एगे संघावमावनंति जे तत्थ संघायमावर्जति ते तत्य परियावजंति जे तत्थ परियायजंति ते तत्थ उद्दायति ।३८1-37 (३९) एत्य सत्थं समारंभमाणस्स इछेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति तं परिणाय मेहावी नेव सयं अगणिसत्यं समारंभेजा नेवन्नेहिं अगणि-सत्थं समारंमावेजा अगणि-सत्थं समारंभपाणे अन्ने न समणुजाणेजा जस्सेते अगणि-कम-समारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे - तिमि ।३९।-38 • पटमे अन्नपणे चउत्यो उद्देसो समतो . -: पंच मो - उदे सो :(४०) तं नो करिस्सामि समुट्ठाए मता मइमं अभयं विदित्ता तं जे णो करए एसोवरए एत्थोवरए एस अणगारेति पवुबइ १४०1-39 (४१) जे गुणे से आवट्टे जे आवट्टे से गुणे १४१/-40 (४२) उड्डे अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रुवाई पासति सुणमाणे सद्दाई सुणेति ।४२|-41 (४३) उड्ढे अहं तिरियं पाईणं पुच्छमाणे रुवेसु मुच्छति सद्देसु आवि एस लोए वियाहिए एत्य अगुत्ते अणाणाए ।४३1-42 (४४) पुणो-पुणो गुणासाए वंकसमायारे ।४४)-43 (४५) पमत्ते गारमावसे ।४५1-44 (४६) लज्जमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवदमाणा जमिणं विरुवरुवेहि सत्थेहि वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्यं समारंभ माणे अने अणेगरुवे पाणे विहिंसति तत्थ खलु भगवया परिणा पवेदिता इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-पाणण-पूयणाए जाती मरणमोषणाए दुक्खपडिघायहेडं से सयमेव वणरसइ-सत्थं समारंभइ अन्नेहिं वा वणस्सइ-सत्यं समारंभावेइ अन्ने वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ तं से अहियाए तं से अवोहीए For Private And Personal Use Only

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