Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ सुपक्षपो-२, अन्यण-१, उद्देसो-१ नमो नमो निम्मत सणस्त पंचप गणधर श्री सुधर्मास्वामिने नमः बीओ सुयक्खंधो | पढमं अज्झयणं-पिंडेसणा, --: प ट मो - उ हे सो :(३३५) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुल पिंडवाव-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेनं पुण जाणेजा - असणं या पाणं वा खाइमं वा साइमं या पाणेहिं या पणएहिं या वीएहिं या हरिएहि वा संसत्तं उम्मिस्सं सीओदएण या ओसित्तं रयसा वा परिवासियं तहपगारं असणं वा पाणं वा खाइमं या साइमं या - परहत्थंसि वा परपायंसि या - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लामे वि संते नो पडिग्गाहेशा से य आहाच पडिग्गाहिए सिया से तं आयाय एगंतमवक मेजा एगंतमव कमेत्ता-अहे आरामंसि वा अहे उवस्ससि वा अप्पंडे अप्पपाणे अप्प-चीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पदए अप्पत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मकडासंताणए विगिंचिर-विगिंचिय उमिस्सं विसोहिय-विसोहिय तओ संजयापेव भुजेज्ज वा पीएज या जं च नो संचाएजा भोत्ताए या पायए या से तमायाय एगतमव क्मे जा एगतमवकोत्ता - अहे झाम-थंडिलंसि या अट्टि-रासिसि वा किट- रासिसि वा तुस-रासिंसि या गोमय-रासिंसि या अण्णवरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय पसज्जिय-पमञ्जिय तओ संजयामेव परिट्ठवेना ।२२४1-1 (३३६) से मिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहायइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविठे समाणे सेजाओ पुण ओसहीओ जाणेजा-कसिणाओ सासिआओ अविदलकडाओ अतिरिच्छच्छिन्नाओ अब्बोच्छिन्नाओ तरुणियं वा छिवाडि अणभिकंताभजियं पेहाएअफासुवं अणेसणिनं ति मण्णमाणे लाभे संते नो पडिगाहेजा ॥२२५/-2 । (३३७) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ [कुलं पिंडयाय-पडियाए अणु पविढे समाणे सेजाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा-अकसिणाओ असासियाओ विदल-कडाओ तिरिच्छच्छिन्नाओ वोच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडि अभिकंतं भजियं पेहाए-फासुयं एसणिनं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा से भिक्खू या भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु] पविढे समाणे सज्जं पुण जाणेजा-पिहुयं वा बहुरजं वा भुजियं वा मथु वा चाउलं वा चाउल-पलंवं वा सई मज्जियं-अफासुर्य अनेसणिचं ति मण्णमाणे लाभे संते नो पडिगाहेजा ।२२६)-3 (३३८) से भिक्खू या भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविठे] समाणे सेनं पुण जाणेजा पिहुयं वा बहुरज वा भुंजियं या मंथु वा चाउलं या चाउल-पलंवं वा असई भजियं दुक्खुत्तो वा भजियं तिक्बुत्तो वा भञ्जिवं फासुयं एसणिज्नं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा से भिक्खू वा भिक्षुणी या गाहावइ-कुलं [पिंडवाय-पडियाए] पविसितुकामे नो अण्णउत्थिएण वा गारस्थिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण या सद्धिं गाहावइकुलं पिंडवाच-पडियाए पविसेज वा णिक्खमेज वा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा दहिया बियार For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130