Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ आयारो २/१/१०/३९३ [अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अपुदए अप्पुत्तिंग-पणग-दंग-मट्टिय-मक्कडा ] संताजए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्ठियाई कंटए गहाय से त्तमायाए एगंतमवक मेज्जा एगंतवक्क मेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा [अट्ठि-रासिंसि वा किट्ट - रासिंसि या तुस रासिंसि या गोमय रासिंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय) पमजिय पमज्जिय तओ संजयामेव परिट्ठेज्जा (२८१1-58 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९३ ) से भिक्खु वा [ भिक्खुणी वा गाहायइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे ] समाणे सिवा से परो अभिहरु अंतो-पडिग्गहए बिलं चा लोणं उब्मियं वा लोणं परिभाएता णीहट्टु दलएजा तहष्पगारं पडिग्गहगं परहत्यंसि वा परपायंसि वा अफासूर्य अणेसणिज्जं [ति मण्णमाणे लाभे संते] नो पडिगाहेज्जा से आहछ पडिग्गाहिए सिया तं च नाइदूरगए जाणेज्जा से समायाए तत्थ गच्छेज्जा गच्छेत्ता पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो त्ति वा भइणि त्ति चा इमं ते किं जाणया दिन्नं उदाहु अजाणया सोय भणेना-नो खलु मे जाणचा दिनं अजाणया का खलु आउसो इदाणिं णिसिरामि तं मुंजह च णं परिभाएह च णं तं परेहिं समगुण्णाय समसिठ्ठे तओ संजयामेव मुंजेज वा पीएज वा जं च नो संचाएति भोत्तए वा पाय या साहम्मिया तत्यं वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया तेसिं अणुपदातव्यं सिया नो जत्थ साहम्मिया सिया जहेव बहुपरियावण्णे कीरति तहेव कायव्वं सिया एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं । जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए -त्ति afù) 18621-59 पट अन्य दसम उद्देसो समत्तो. -: एगार समो सो : ( ३९४ ) भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा बसमाणे या गामाणुगामं चा दूइजमाणे मणुण्णं भोवण-जायं लमित्ता से भिक्खू गिलाइ से हंदह णं तस्साहरह से व भिक्खू नो भुंजेज्जा तुमं चेव णं मुंजेज्जासि से एगइओ भोक्खामित्ति कट्टु पलिउंचिय-पलिउंचिय आलोएज्जा तं जहाइमे पिंडे इमे लोए इमे तित्तए इमे कडुयए इमे कसाए इमे अंबिले इमे महुरे नो खलु एत्तो किंचि गिलाणस्स सयति त्ति माइट्ठाणं संफासे नो एवं करेजा तहाठियं आलोएजा जहाठियं गिलाणस्स सदति तं तित्तयं तित्तएत्ति वा कडुवं कटुएत्ति चा कसायं कसाएत्ति वा अंबिलं अंबिलेति वा महुरं महुरेत्ति वा ॥ २८३1-60 ( ३९५ ) भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा बसमाणे या गामाणुगामं दूइजमाणे मणं भोय जायं भित्ता से भिक्खु गिलाइ से हंदह णं तस्साहरह से य भिक्खु नो भुंजेज्जा आहरेज्जासि णं नो खलु मे अंतराए आहरिस्सापि इच्चेयाई आयतणाई उचाइकम्प । २८४) -61 (३९६ ) अह भिक्खू जाणेशा सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा- असंसट्ठे हत्थे असंसठ्ठे पत्ते तहप्पगारेण असंसट्ठेण हत्येण वा मत्तेण वा असणं वा [पाणं वा] खाइमं या साइमं वा सयं वा णं जाएजा परो वा से देखा-फासुर्य [ एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते] पडिगाहेज्जा- पढमा पिंडेसणा अहावरा दोच्चा पिंडेसणा-संसट्ठे हत्ये संसट्ठे मत्ते [तहहम्पगारेण संसद्रूण हत्येण वा मत्तेण या असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएजा परो वा से देखा www For Private And Personal Use Only

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