Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ आपारो - २/२/२/४०८ एस हेऊ एस कारणं एस उवएसो] जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा [सिजं वा निसीहियं वा चेतेजा ।२९६/-73 (४०८) आयाणमेय भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धिं संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स अपणो सयट्ठाए विरूवरूवाई दारुयाइं भिन्न-पुब्बई भवंति अह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाई दारुवाइं भिंदेज वा किणेज या पामिच्चेज या दारुणा वा दारुपरिणाम कट्ट अगणिकायं उजालेज वा पञ्जालेज वा तत्य भिक्खू अभिकंखेना आयावेत्तए वा पयावेत्तए या वियट्टितए वा अह मिक्खूणं पुचोवदिट्ठा [एस पइण्णा एस हेऊ एस कारणं एस उवएसो जं तहप्पगारे उबस्सए नो ठाणं वा [सेज़ या निसीहियं वा] चेतेना।२९७1 -74 (४०९) से भिक्खू वा भिक्खुणी या उमार-पासवणेणं उच्चाहिज्जमाणे राओ घा विआले वा गाहावइ-कुलस्स दुवारवाई अवंगुणेला तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा तस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ एवं वदत्तिए-अवं तेण पविसइ वा नो वा पविसइ उवल्लियइ वा नो वा उपल्लियइ अइपतति वा नो वा अइपतति बदति वा नो वा वदति तेण हर्ड अण्णेण हडं तस्स हडं अण्णस्स हडं अयं तेणे अयं उववरए अयं हंता अयं एत्थमासी तं तवस्सिं भिक्खु अतेणं तेणं ति संकति अह भिक्खूणं पुब्बोवदिट्ठा [एस पइण्णा एस हऊ एस कारणं एस उवअसो जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सेज्नं या निसीहियं वा] चेतेज्जा ।२९८1-75 (१०) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेजं पुण उवस्सयं जाणेजा-तण-पुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा सअंडे [सपाणे सीए सहरिए सउस सउदए सउत्तिंग-पणग-दग मट्टिय-मकडा) सताणए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सेनं वा निसीहियं वा चेतेजा से भिक्खू वा भिक्खुणी घा सेनं पुणं उवस्सयं जाणेजा-तण-पुंजेसु वा पलाल-पुंजेसुं वा अप्पंडे [अप्पपाणे अप्पबीए अपहरिए अप्पोसे अप्पुदए अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-पकडासंताणए तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहिता पमजित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा सेनं वा निसीहियं वा] चेतेझा ।२९९।-76 (११) से आगंतारेसु वा आरामगारेसु वा गाहावइ-कुलेसु या परियावसहेसु वा अभिक्खणं-अभिरखणं साहम्मिएहिं ओवयमाणेहिं नोवएना १३००१-77 (४१२) से आगंतारेसु वा [आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा] परियायसहेसु वा जे भयंतारो उडुलद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तत्थेव मुजो संवसंति अयमाउसो कालाइकं त-किरिया वि भवइ ।३०१/-78 (१३) से आगंतारेसु वा [आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा] परियावसहेसु वा जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं या कप्पं उवातिणावित्ता तं दुगुणा तिगुणेण अपरिहरिता तत्थेव भुज्जो संवसंति अवमाउसो उबट्ठाण-किरिया वि भवइ ३०२.79 (१४) इह खलु पाइर्ण वा पडीर्ण वा दाहीणं वा उदीणं वा संतेगइया सड्ढा मयंति तं जहा-गाहावई वा [गाहादइणीओ वा गाहावइ-पुत्ता वा गाहावइधूयाओ वा गाहावइसुण्हाओ वा धाईओ वा दासा वा दासीओ वा कम्मकारा वा] कम्मकरीओ वा तेसिं च णं आयार-गोयो नो सुणिसंते भवइ तं सद्दहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं बहवे समणपाहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्य-तत्थ अगारीहिं अगाराई चेतिताई भवंति तं जहा-आएसणाणि वा आयतणाणि वा देवकुलाणि वा सहाओ वा एवाओ वा पणिय-गिहाणि For Private And Personal Use Only

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