Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --: बी ओ उसो : (७३) आई आउट्टे से मेहावी खणंसि मुक्के 1७३1-72 (७४) अणाणाए पुट्ठा वि एगे नियट्टंति मंदा मोहेण पाउडा अपरिग्गहा भविस्सामो समुट्ठाए लद्धे कामेहिगाहंति अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति एत्थ मोहे पुणो पुणो सपणा नो हव्वाए नो पारीए ।७४|-73 (७५) विमुक्का हु ते जणा जे जणा पारगामिणो लोभं अलोमेण दुर्गाछमाणे लद्धे कामे नाभिगाइ । ७५/-74 — (७६) विणइत्तु लोभं निक्खम्म एस अकम्मे जाणति -पासति पडिलेहाए नावकंखति एस अणगारेति पचति अहो य राओ य परितप्यमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगढी अट्ठालोभी आलूंपे सहसकारे विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्ये पुणो- पुणो से आय-बले से नाइचले से मित्त बले से पेच्च-वले से देव-वले से राय-वले से चोर-वले से अतिहि-वले से किवण - वले से समण-वले इच्चेतेहिं विश्वरुवेहिं कजेहिं दंड-समायाणं सपेहाए भया कजति पावमोक्खत्ति मण्णमाणे अदुवा आसाए |७६ -75 (७७) तं परिणाय मेहावी नेव सयं एएहिं कजेहिं दंडं समारंभेजा नेवण्णं एएहिं कञ्जेहिं दंडं समारंभावेजा नेवण्णं एएहिं कजेहिं दंडं सभारंभतं समणुजाणेज्जा एस मागे आरिएहिं पवेइए जहेत्थ कुसले नोवलिंपियालिं त्ति देमि 1991- 76 बीए अन्सपणे बीओ उद्देसो समतो - त इ ओ उसो : (७८) से असई उच्चागोए असई नीयागोए नो हीणे नो अइरिते नो पीहए इति संखाय के गोयावादी के माणावादी कंसि वा एगे गिज्झे तम्हा पंडिए नो हरिसे नो कुज्झे भूएहिं जाण पडिलेह सातं ७८1-77 ( ७९ ) समिते एयाणुपस्सी तं जहा अंधत्तं बहिरत्तं भूयत्तं काणत्तं कुंटतं खुजतं वभत्तं सामत्तं सवलत्तं सहपमाएणं अणेगरुवाओ जोणीओ संघाति विरुवरुवे फासे पडसंवेदे ॥७९1-78 आयारो - १/२/२/७३ (८०) से अबुजज्झमाणे हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरिमाणे जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं खेत्त-वत्थु ममायमाणाणं आरत्तं विरतं मणिकुंडलं सह हिरण्येण इथियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता न एत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सति संपुष्णं वाले जीविकामे लालप्यमाणे मूढे विपरिवासुवेइ | ८०1-79 (८१) इणमेव नावखंति जे जणा घुवच्चारिणो । जाती- मरणं परिण्णाय चरे संकमणे दढे - (८२) नत्थि कालस्स नागमो राखे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अपिवा पियजीविण जीविउकामा सव्वेसिं जीवियं पियं तं परिंगिज्झ दुपयं च पवं अभिजुंजियाणं संसिचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्य मत्ता भवइ अप्पा वा बहुगा वा से तत्थ गढ़िए चिट्ठइ भोवणाए तओ से एगया विपरिसिद्धं संभूवं महोबगरणं भवइ तं पिसे एगया दावाचा विभवंति अदत्तहारो वा से अवहरति रायाणो वा से विलुपंति नस्सति वा से For Private And Personal Use Only 11911-1

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