Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सुयक्खंयो-१, अभयण-८, उद्देसो-८ संथरेज्जा तणाई संथरेत्ता एत्थ वि समए कार्य च. जोगं च इरियं च पचक्खाएजा तं सच्चं सचावादी ओए तिष्णे छिन्न-कहकहे आतीतठे अणातीते वैचाण मेउरं कायं संविहूणिय विरुवरुवे परिसहोवसग्गे अरिंस विस्सं भइत्ता भेरवमणुचिण्णे तत्थावि तस्स कालपरिवाए से तत्थ विअंतिकारए इचेतं विमोहायतणं हियं सुहं खमं निस्सेवसं आणुगागामि - ति मि।२२३। -226
.अहमे अझयणे सत्तमो नदेसो समत्तो .
-: अटूठ मो --उसो :(२४०) आणुपुब्बी - विमोहाई जाइं घीरा समासज्ज
वसुमतो मइमंतो सव्वं नच्चा अणेलिसं । 11१७11-1 (२४१) दुविहं पि विदित्ताणं वुद्धा धम्पस्स पारगा
अणुपुबीए७ संखाए आरंभाओ तिउट्टति ||१८||-2 (२४२) कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तितिक्खए
अह भिक्ख गिलाएजा आहारस्सेय अंतियं । ||१९||-3 (२४३) जीवियं णाभिकखेज्जा परणं नोवि पत्थए
दुहुतोवि न सज्जेज्जा जीविते मरणे तहा ||२०|-4 (२४४) मज्झत्थो निजरापेही समाहिमणुपालए
अंतो वहिं विउसिज्ज अज्झयं सुद्धमेसए ||२१||-5 (२४५) जं किंचुवक्कम जाणे आउक्खेमस्रा अप्पणो
तस्सेव अंतरद्धाए खिप्पं सिक्खेन पंडिए । २२/-6 (२४६) गामे वा अदुवा रण्णे थंडिलं पडिलेहिया
अप्पपाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी ||२३||-7 (२४७) अणाहारो तुअर्टेजा पुट्ठो तत्थहियासए
नातिवेलं उवचरे माणुस्सेहिं वि पुटुओ ||२४||-8 (२४८) संसप्पगा व जे पाणा जे य उड्ढमहेचरा
मुंजंति मंस-सोणियं न छणे न पमजए ॥२५॥1-9 (२४९) पाणा देहं विहिंसंति टाणाओ न विउद्यमे
आसवेहिं विवित्तेहिं तिप्पमामेऽहियासए ॥२६॥-10 (२५०) गंधेहि विचित्तेहि आउ-कालस्स पारए
पग्गहियतरगं चेयं दवियस्स वियाणतो ||२७||-11 (२५१) अवं से अवरे धम्ने नायपुत्तेण साहिए
आयवजं पड़ीयारं विजहिजा तिहा तिहा ||२८||-12 (२५२) हरिएसु न णिवजेजा थंडिलं मुणिआ सए
विउसिज अणाहारो पुट्ठो तस्यहियासए ॥२९॥-13 (२५३) इंदिएहि गिलायंते समियं साहरे मुणी
तहावि से अगरिहे अचले जे समाहिए ॥३०॥1-14
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