Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५४) अभिक्कमे पडिक मे संकुचए पसारए काय -साहारणाए एत्य वादि अचेयणे (२५५) परकपे परिकिलंते अदुवा चिट्ठे अहायते ठाणेण परिकिलंते निसिएज्जा य अंतसो ( २५६ ) आसीणेणेलिसं मरणं इंद्रियाणि समीरए कोलावासं समाजज्ज वितरं पाउरेसए (२५७ ) जओ वज्रं समुप्पज्जे न तत्थ अवलंबए ततो उसे अप्पाणं सव्वे फसेहियासए (२५८) अयं चायततरे लिया जो एवं अणुपालए सव्वगायनिरोधेवि ठाणातो न विउम्भमे (२५९) अयं से उत्तमे धम्मे युव्यट्ठाणस्स पग्गहे अचिरं पडिलेहित्ता विहरे चिट्ठ मारणे (२६०) अचित्तं तु समासज्ज ठावए तत्य अप्पगं बोसिरे सव्वसो कार्य न पे देहे परीसहा (२६१) जावज्जीवं परीसहा उवसग्गा य संखाय संडे देहभेयाए इति पण्णेहियासए (२६२) भेउरेसु न रज्जेज्जा कामेसु बहुतरेसु वि इच्छा - लोभं न सेवेचा सुहुमं वण्णं सपेरिया (२६३) सासएहिं निमंतेज्जा दिव्वं मायं न सद्दहे तं पडिवुज्झ माहणे सव्वं नूमं विधूनिया (२६४) सव्वट्ठेहिं अमुच्छिए आउकालस्स पारए तितिक्खं परमं नचा विमोहण्णतरं हितं - आयारो - १/८/८/२५४ For Private And Personal Use Only 113901-25 ||३२||-16 |३३३|-17 ॥३४॥-18 ॥३५॥-19 |३६|| 20 ।। ३७।। 21 113411-22 ॥३९॥-29 1180|1-24 अट्टमे अपणे अट्टमो उद्देसो समत्तो अठ्ठयं अयणं समत्तं नवमं अज्झयणं-उवहाणसुयं -: पढ मो उसो : ( २६५ ) अहासुयं वदिस्सामि जहा से समणे भगवं उठाय संखाए तंसि हेमंते अहुणा पव्वइए रीयत्था (२६६) नो चेविमेण वत्येण पिहिस्सामि तंसि हेमंते से पारए आवकहाए एवं खु अणुधम्मियं तस्स (२६७) चत्तारि साहिए मासे बहवे पाण-जाइया आगम्म अभिरुज्झ कार्य विहरिंसु आरुसियाणं तत्थ हिंसिसु (२६८) संवच्छरं साहियं मासं जं न रिवसि वत्यगं भगवं अचेलए ततो चेई तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥। ४१॥-25 त्ति बेमि ।। १।४२।।-1 ॥२४३॥1-2 ||४४३-३ 118411-4

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