Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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॥१४||-173
19411-174
सुयक्षयो-१, मायण-५, उद्देतो-६ (१८५) से न सद्दे न रुवे न गंधे न रसे न फासे इचेताव ति धेसि । १७२१-371 •पंचमे अन्नपणे एट्रो उद्देसो सपत्तो . पंचमं अज्झयणं सपत्तं .
(छठं अज्झयणं -धुयं |
-: प ४ मो - उ हे सो:(१८६) ओबुझमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति अक्खाइ से नाणमणेलिसं से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमगं एवं एगे महावीरा विप्परक्कमंति पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे से बेमि - से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहइ भंजगा इव सन्निवेसं नो चयंति एवं एगे अणेगरुवेहिं कुलेहिं जाया रुवेहिं सत्ता कलुणं यणंति णियाणाओ ते ण लभंति मोक्खं अह पास तेहिं-तेहिं कुलेहि आयत्ताए जाया- १७३।172 (१८७) गंडी अदुवा कोढी रायंसी अवमारियं
काणियं झिमियं चैव कुणियं खुञ्जियं तहा (१८८) उदरिं पास मूयं च सूणिअंच गिलासिणिं
वेवई पीढसप्पिं च सिलिदयं महुमेहणिं (१८९) सोलस एते रोगा अक्खाया अणुपुष्यसो
अह णं फुसंति आर्यका फासा य असमंजसा |१६||-175 (१९०) मरणं तेसिं संपेहाए उववायं चयणं च नचा | परिपार्ग च संपेहाए तं सुणेह जहा तहा संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया तामेव सई असई अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेति बुद्धेहिं एवं पवेदितं संति पाणा वासगा रसगा उदए उदयचरा आगासगामिणो पाणा पाणे किलेसंति पास लोए महत्मयं ।१७४|-177
(१९१) बहुदुक्खा हु जंतको सत्ता कामेहिं माणवा अबलेण वहं गच्छति सरीरेण पभंगुरेण अट्टे से बहुदुक्खे इति वाले पगभइ एते रोगे बहू नच्या आउरा परितावए नालं पास अलं तबेएहिं एयं पास मुणी महब्भयं नातिवाएज कंचणं ।१७५/-178
(१९२) आयाण भी सुस्सूस भो धूयवादं पवेदइस्सामि इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहि कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूता ।१७६|-179
(१९३) अभिसंजाता अभिनिव्वट्टा अभिसंवुड्ढा अभिसंबुद्धा अभिणिस्खंता अणुपुब्वेण महामुणी तं पर कमंत परिदेवमाणा मा णे चपाहि इति ते वदंति छंदोवणीया अन्झो- ववन्ना अकंदकारी जणगा रुवंति । अतारिसे मुणी नो ओहंतरए जणगा जेण विष्पजढा सरणं तस्य नो समेति किह नाम से तत्थ रमति एवं नाणं सया समणुयासिजासि -त्ति बेमि ।१७७1-180
•छले अध्ययणे पटमो उसो तफ्तो.
-: बी ओ - उद्दे सो:(१९४) आतुरं लोयमायाए चइत्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं वसिता बंभचेरम्मि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा अहेगे तमचाइ कसीला 1१७८1-181
(१९५) वत्यं पङिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिना अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा
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