Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुयक्वंयो-१, अज्मयणं-५, उद्देसो-३
(१६७) जुधारिहं खलु दुलहं जहेत्थ कुसलेहिं परिणा-विवेगे मासिए चुए हु बाले गट्याइसु रजइ अस्सि चेयं पव्युञ्चति रुवंसि वा छणंसि वा से हु एगे संविद्धपहे मुणि अण्णहा लोगसुवेहमाणे इति कम परिणाय सव्वसो से न हिंसति संजपति नो पगब्मति उवेहमाणो पत्तेयं सायं वण्णाएसी नारमे कंचणं सव्वलोए एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे निवित्रचारी अरए पयासु।१५५/ -154
(१६८) से वसुमं सब-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पाव कम्मं तं नो अनेसि जं सम्मं ति पासहा तं मोणं ति पासहा जं मोणं ति पासहा तं सम्मं ति पासहा न इमं सक्षं सिदिलेहिं अद्दिजमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पपत्तेहिं गारमावसंतेहिं मुणी मोणं समायाए पुणे कम्म-सरीरगं पंतं लूहं सेवंति वीरा समतदंसिणो एस ओहंतरे पुणी तिण्णे मुत्ते विरह वियाहिए - त्ति बेमि 1१५६|-155
•पंचमे अझयणे तइओ उद्देसो सपत्तो .
- च उ त्यो - उ । सो :(१६९) गामाणुगामं दूइजमाणस्स दुजातं दुप्परक्कतं भवति अवियत्तस्स मिक्खुणो ।१५७1-156
(१७०) वयसा वि एगे वुइया कुपंति माणवा उन्नयमाणे व नरे महता मोहेण मुज्झति संयाहा वहवे भुजो-भुद्धो दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो एयं ते मा होउ एवं कुसलस्स दंसणं तद्दिीए तम्पोतीए तप्पुरवकारे तस्सण्णी तत्रिवेसणे जविहारी चित्तणिवाती पंथणिज्झाती पलीवाहरे पासिय पाणे गच्छेज्जा ।१५८1-157
(१७१) से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमजमाणे एगचा गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति इहलोग-वेवण वेजावडियं जं आउट्टिकयं कामं तं परिण्णाए विवेगमेति एवं से अप्पमाएणं विवेगं किट्टति वेयवी [१५९1-158
(१७२) से पभूवदंसी पभूयपरिण्णाणे उवसंते समिए सहिते सया जए दटुं विष्पडिवेदेति अप्पाणं- किमेस जणो करिस्सत्ति एस से परमारापो जाओ लोगप्पि इत्थीओ मुणिणा हु एतं पवेदितं उव्वाहिज्जमाणे गामधमेहिं- अवि णिब्बलासए अवि ओमोपरिवं कुजा अवि उड्ढंटाणं ठाइजा अवि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा अवि आहारं वोच्छिदेजा अवि चए इत्यीसु मण्णं पुवं दंडा पच्छा फासा पुव्वं फासा पच्छा दंडा इन्चेते कलहासंगकरा भवंति पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासे वणाए त्ति बेपि से नो काहिए नो पासणिए नो सपसारए ना एमाए नो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्प-संवुडे परिवजए सदा पावं एतं मोणं समणुवासिज्जासि । - ति बेमि ।१६०1-159
.पंचमे अझयणे चउत्यो उहेसो सपत्तो .
- पंच मो - उद्दे सो :(१७३) से येमि- तं जहा अवि हरए पडिपुण्णे चिट्ठइ समंसि भोमे उवसंतरए सारक्खमाणे से चिट्ठति सोयमज्झगए से पास सव्यतो गुत्तो पास लोए महेसिणो जे य पण्णाणमंता पवुद्धा आरंभोवरया सम्पमेयंति पासह कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेपि १६१1-160
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130