Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सुपखंघो-१, अन्द्रयणं-४, उद्देसो-३ हरंति इति कम्म परिण्णाय सव्वसो ।१३५)-134
(१४८) इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए घुणे सरीरं कसेहि अप्पाणं जरेहि अप्पाणं जहा जुण्णाई कट्ठाई हव्ववाहो एमत्थति एवं अत्तसमाहिए अणिहे विगिच कोहं अविकंपमाणे ११३६।-135
(१४९) इमं निरुद्धउयं संपेहाए दुक्खं च जाण अदवागमेस्सं पढो फासाइं च फासे तोयं च पास विप्कंदमाणं जे निबुडा पावेहि कम्मेहिं अनिदाणा ते विवाहिया तम्हा तिविजो नो पडिसंजलिजाप्ति - ति बेमि १३७I-130
.चउत्थे अज्झयणे तइओ उद्देसो समत्तो .
-: च उ त्यो - उद्दे सो :(१५०) आदीलए पीलए निप्पीलए जहिता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसपं तम्हा अविमणे धीरे सारए समिए सहिते सया जए दुरणुचरो मागो वीराणं अनियट्टागामीण विगिंच मंच-सौणियं एस पुरिसे दविए वीरे आयाणिज्ने वियाहिए जे घुणाइ समुस्सयं वसिता यंभचांति ११३८1-137
(१५१) नेतेहिं पलिछिन्नेहिं आयाणसोय-गढिए वाले अव्योच्छिन्नबंधणे अणभिवंतसंजोए तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो नत्थि ति बेमि ।१३९।-138
(१५२) जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स को सिया से हैं पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए सम्मभवंति पासह जेण बंधं वहं घोरं परितावं च दारुणं पलिछिंदिय वाहिरगं च सोयं निक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं कम्पुणा सफल दटुं तओ निझाइ क्यवी ।१४०।-139
(१५३) जे खलु भो वीरा समिता सहिता सदा जया संघइदसिणी आतोवरया अहातहा लोगमुवेहमाणा पाईणं पडीणं उदीणं इति सचंसि परिचिट्ठिप्तु साहिसलामो नाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा जयाणं संबडदंसिणं आतोवरवाणं अहा-तहा लोगमुवेहमाणाणं किमथि उवाधी पासगस्स न विजति नस्थि -त्ति बेमि !१४१।। •घउत्थे अझयणे चउत्यो उहेसो सपत्तो . चउत्यं अजयणं रामत्तं .
पंचमं अज्झयणं-लोगसारो
--: प द मो -- उ हे सो :(१५४) आवंती के आवंति लोयंसि विष्परामुसंति अट्ठाए अगाए वा एएसु चेव विष्परागुसंति गुरु से कामा तओ से पारस्स अंतो जओ से मारस्स अंतो तओ से टूरे नेव से अंतो नेव से दूरे ।१४२। -141
(१५५) से पासति फुसियमिव कुसगे पणुन निवतितं बारितं एवं वालस्स जीवियं मंदस्स अविजाणओ कूराणि कम्माणि वाले परमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ मोहेण गन्मं मरणाति एति एत्य मोहे पुणो-पुणो ।१४३।-142
__(१५६) संसयं परिजाणतो संसारे परिणाते भवति संसयं अपरिजाणतो संसारे अपरिपणाते भवति ।१४४)-143
(१५७) जे छेए से सागारियं न सेवए कट्ट एवं अविजाणओ वितिया मंदस्स वालवा लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविना अणासेवणयाए - ति वेमि ।१४५/-144
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