Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ आपारो - १/२/५/११ असमायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिपणे |८९।-88 (९१) दुहओ छेत्ता नियाइ वत्थं पडिग्गहं केवलं पायपुछणं उग्गहं च कडासम् एतेसु चंब जाएजा १९०1-89 (१२) लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेजा से जहेयं भगवया पवेइयं लाभो त्ति न मजेजर अलाभो त्ति न सोयए वहुं पि लघु न निहे परिग्गहाओ अप्पाणं अवस केला ।९१।-90 (९३) अण्णहा पं पासए परिहरेज्जा एस मागे आरिएहिं पवेइए जहेत्थ कुसले नोबलिंपिज्जासि ति बेमि १९२।-91 (९४) कामा दुरतिमा जीवियं दुप्पडिवूहणं कामकामी खलु अयं पुरिसे से सोवति जूरति तिप्पति पिडुति परितप्पति ।९३|-92 (९५) आवतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ उड्ढं भागं जाणइ तिरयं भागं जाणइ गढिए अणुपरियट्टमाणे संवि विदित्ता इह मच्चिएहिं एस वीरे पसंसिए जे दघे पडिमोयए जहा अंतो तहा याहिं जहा याहिं तहा अंतो अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि पासति पढोवि सवंताई पंडिए पडिलेहाए ।९४१-93 (९६) से मइमं परिण्णाय मा य हु लालं पच्चासी मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए कासकसे खलु अयं पुरिसे बहुमाई कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोमं वरं वड्डेति अप्पणो जमिणं परिकहिजइ इमस्स चैव पडिवूहणयाए अमरायड महासड्डी अट्टमेतं पेहाए अपरिण्णाए कंदति ।९५/-94 (९७) से तं जाणह जमहं वेसि तेइच्छं पंडिते पवयमाणे से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता अकई करिस्सामित्ति मण्णमाणे जस्स वि य णं करेइ अतं वालस्स संगेणं जे वा से कारेइ बाले न एवं अणगारस जायति - त्ति बेमि ।९६1-95 .बीए अन्झपणे पंचपो उद्देसो सपत्तो.. - छटू ठो - उ हे सो :(९८) से तं संवुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए तम्हा पावं कम्मं ने य कुजा न कारवे १९७)-96 (९९) सिया से एगयरं विपरामुसइ छसु अण्णयरंसि कप्पति सुहट्ठी लालप्पमाणे सरण टुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति सएण विप्पमाएण पुढो वचं पकुव्वति सिमे पाणा पव्वहिया पडिलेहाए नो निकरणाए एस परिण्णा पवुच्चइ कम्मोवसंति ।९८1-97 (१००) जे ममाइय-पतिं जहाति से जहाति गमाइयं से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स नस्थि ममाइयं तं परिण्णाय मेहावी विदित्ता लोग यंता लोगसणं से मातिमं परकमेजासि ति बेमि ।९९1-98 (१०१) नारतिं सहते वीरे वीरे नो सहते रति जम्हा अविमणे वीरे तम्हा वीरेण रज्जति ॥२॥-1 (१०२) सद्दे य फासे अहियासमाणे णिबिद नंदि इह जीवियस्स मुणी पोणं समादाय घुणे कम्म-सरीरगं ॥३।1-2 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130