Book Title: Agam 01 Ayaro Angsutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१४
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
आयारो
( ११६ ) उम्मुंव पासं इह मच्चिएहिं आरंभजीवी उ भयाणुपस्सी कामेसु गिद्धा निचयं करेति संसिच्यमाणा पुणति गम्भ
(११७) अवि से हासमासज्ज हंता नंदीति मन्त्रति अलं बालम्स संगेण वेरं वड्ढेति अप्पणी
111911-4
( ११८ ) तम्हा तिविज्जो परमंति नचा आयंकदंसी न करेति पाव अग्गं च मूलं च विंगिच धीरे पतिच्छिंदिया णं निकम्मदंसी (११९) एस मरणा पमुच्चइ से हु दिट्ठपहे मुणी लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते सपिते सहिते सया जए कालकंखी परिच्चए बहुं च खलु पावकम्म पगडं । ११२/- 112
( १२० ) सञ्चंसि धितिं कुव्वह एत्योवरए मेहावी सव्वं पावकम्पं झोसेति 1993 - 112 ( १२१ ) अणेगचिते खलु अयं पुरिसे से केयणं अरिहए पूरइत्तए से अण्णवहाए अण्णपरियावाए अण्णपरिग्गहाए जणवचदहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए 199४1-113
(१२२ ) आसेवित्ता एतमट्ठ इच्छेवेगे समुट्ठिया तम्हा तं बिइयं नो सेबए निस्सारं पासिय नाणी उववावं चवणं अणण्णं चर माहणे से न छणे न छणावए छणतं नाणुजाणइ गिविंद नंदि अरते पचासु अणोपदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं 1994/-114
(१२३) कोहाइमाणं हणिया य वीरे लोभस्स पासे निरयं महंतं तन्हा हि वीरे विरते वहाओ छिंदेज सोयं लहुभूयगामी ( १२४) गंथं परिण्णाय इहज्जेव बीरे सोयं परिण्णाय चरेश दंते उम्म लघु इह माणवेहिं नो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि
-
(१२८) अवरेण पुव्वं न सरंति एगे किमस्सतीतं किं वागमिस्सं भासंति एगे इह माणवा उ जमस्तीतं आगमिस्सं
१/३/२/११६
For Private And Personal Use Only
1411-2
॥६॥-3
लइए अज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो - त इ ओ
उद्दे सो :
(१२५) संधि लोगस्स जाणिता आयाओ बहिया पास तम्हा न-हंता न विधायए जमिणं अन्नमण्णवितिगिच्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्पं किं तत्य मुणी कारणं सिया ।११६/- 115 ( १२६ ) समयं तत्युवेहाए अप्पाणं विष्पासयए
अणण्णपरमं नाणी नो पमाए कयाइ वि आयगत्ते या वीरे जायामायाए जावए
119011-1
(१२७) विरांग रुवेहिं गच्छेजा महया खुट्टएहि वा [ ||१०|| ? ] आगतिं गतिं परिणाय दोहिं वि अंतेहिं अदिस्समाणे से न विज्जइ न भिन्नइ न इज्झइ न हम्मइ कंचणं सव्वलोए 1995/- 116
11८11-1
IRII-2 - त्ति बेमि ॥
113911-1
(१२९) नातीतपट्ठे न य आगमिस्सं अट्ठं नियच्छंति तहागया उ । विधूत कप्पे एयाणुपस्सी निज्झोसइत्ता खबगे महेसी
॥१२॥-2
(१३० ) का अरई के आणंदे एत्यंपि अग्गहे चरे सव्वं हासं परिचज आलीण गुतो

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130