Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 266
________________ आचाराङ्ग [२३२] प्रा. जाति-मरण-मो.माए दुक्खपडियातहेतुं- से शु. जाइ-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं- से आ. जाइमरणमोयणाए रखपडिधायहेउं से जै. जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेडं ॥ ७६. मे म. जाती-मरण--मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं से के. आर. चन्द्र सयमेव सयमेव सयमेव सयमेव सयमेव पा. अगनिसत्थं समारम्भति,अन्नेहि वा अगनिगत्थं समारम्भावेति, शु. अगणिसत्थं समारम्भइ अति वा असत्थं समारम्भावेइ आ. अगणिसत्थं समारभइणहिं वा अाणिसत्थं समारंभावेइ जै. अगणि-सत्थं पलारंभइ, अण्णेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, म. अगणि-सत्थं समारभति, अण्णेहि वा. अगणिसत्थं समारभावेति, 1. प्रा. अन्ने वा शु. अन्ने वा आ. अण्णे वा जै. अण्णे वा म. अण्णे वा निसत्थं समारम्भमाणे समनुजानति। तं अगणिसत्थं समारभन्ते समणुजाणइ ; तं अगणिसत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ॥ ७७. तं अगणिसत्थं समारभमाणे समणुजाणति । तं कल | Fल न प्रा. से अहिताए , तं से अबोधीए। ३६. से तं सम्बुज्झमाने शु. से अहियाए , तं से अबोहीए। से , तं सम्बुझमाणे आ. से अहियाए तं से अबोहियाए ___ तं संबुज्झमाणे जै. से अहियाए , तं से अबोहीए ॥ ७८. से तं संबुज्झमाणे, म. से अहिताए , तं से अबोधीए । ३६. से तं संबुज्झमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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