Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 354
________________ 320 आचाराङ्ग विविध Miscellaneous Dear Prof. Dr. Chandra, Received with thanks the off-print of your article on editing old Amg. texts in 'Nirgrantha', Vol. 1, 1995, S.C.E.R.Centre, Ahmedabad. The next generation shall thank you for the great undertaking you are pursuing. SANGLI -Prof G.V. Tagare 16-10-96 "विशेषावश्यकभाष्य" को पाण्डुलिपि पर जो भाषा-शास्त्रीय चिन्तन आपने प्रस्तुत किया है वह महत्त्वपूर्ण है। इससे पाठ शुद्ध करने में सहयोग मिलेगा। हमारी दृष्टि में इसके साथ अर्थ को मुख्य आधार मानकर पाठ-शुद्धि का प्रयत्न और होना चाहिए । केवल भाषा-शास्त्रीय दृष्टिकोण पाठ-शुद्धि के लिए अधूरा रहेगा । आपने जो परिश्रम किया है वह स्तुत्य है। लाडनूं ४ नवेम्बर '९६ -आचार्य श्री महाप्रज्ञजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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