Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 281
________________ प्रथम अध्ययन का पुन: सम्पादन [२४७] संस्करणों के पाठों की तुलना प्रा. वनस्सतिसत्थं समारम्भेज्जा नेवऽन्नेहि वनस्सतिसत्थं समारम्भावेज्जा, शु. वणस्सइसत्थं समारंभेज्जा ने'व'नेहिं वणस्सइसत्थं समारम्भावेज्जा आ. वणस्सइसत्थं समारंभेज्जा णेवण्णेहिं वणस्सइसत्थं समारंभावेज्जा जै. वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, म. वणस्सतिसत्थं समारभेज्जा, णेवऽण्णेहिं वणस्सतिसत्थं समारभावेज्जा, प्रा. शु. ; नेवऽन्ने वनस्सतिसत्थं ने'व'न्ने वणस्सइसत्थं णेवण्णे वणस्सइसत्थं णेवण्णे वणस्सइ-सत्थं जेवऽण्णे वणस्सतिसत्थं समारम्भन्ते समनुजानेज्जा । समारभन्ते समणुजाणेज्जा । समारंभंते समणुजाणेज्जा, समारंभंते समणुजाणेज्जा ॥ समारभंते समणुजाणेज्जा । ल म. | प्रा. ४८. जस्सेते वनस्सतिसत्थसमारम्भा परिनाता भवन्ति से जस्से'ए वणस्सइ-कम्म-समारम्भा परिन्नाया भवन्ति से . जस्सेते वणस्सतिसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से जै. ११७. जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से म. ४८. जस्सेते वणस्सतिसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से प्रा. हु मुनी परिन्नातकम्मे त्ति बेमि । शु. हु मुणी परिन्नाय-कम्मे- त्ति बेमि । आ. हु मुणी परिण्णायकम्मे (४७) त्ति बेमि ॥ जै. हु. मुणी परिण्णाय-कम्मे ।- त्ति बेमि ॥ म. हु मुणी परिण्णायकम्मे बेमि ॥ | hchhchh oh Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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