Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 298
________________ आचाराङ्ग प्रा. शु. आ. जै. बेमि- अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे । १६२. अप्पेगे म. म. प्रा. शु. आ. जै. पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे || १६३. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे प्रा. शु. आ. न बेमि- सन्ति सम्पातिमा पाणा आहच्च से बेमि: सन्ति संपाइमा पाणा, आहच्च से बेमि संति संपाइमा पाणा आहच्च जै. उद्दवए । १६४. से संपाइमा पाणा, आहच्च बेमि- संति बेमि- संति संपाइमा ६०. से पाणा आहच्च म. T म. 1 [ २६४ ] प्रा. सम्पतन्ति य । फरिसं च शु. सम्पयन्ति य । फरिसं च आ. संपयंति य फरिसं च जै. संपयंति य ॥ फरिसं च संपतंति य । फरिसं च ६०. से Jain Education International के. आर. चन्द्र खलु पुट्टा एके खलु पुट्ठा एगे खलु पुट्ठा एगे खलु पुट्ट्ठा, एगे खलु पुट्ठा एगे For Private & Personal Use Only सातमावज्जन्ति । संघायमावज्जन्ति; संघायमावज्जंति, संघायमावज्जंति ॥ संघायमावज्जंति । www.jainelibrary.org

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