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परिशिष्ट संरक्षित किया जाय, ताकि आगमों में भगवान् महावीर की वाणी के मूल शब्दों को हम यथावत् सुरक्षित रख सकें । आगमों की भाषा के अर्धमागधी स्वरूप के संरक्षण के लिए प्रो.के.आर.चन्द्रा विगत ८-१० वर्षों से संशोधन कर रहे हैं। उन्होंने चूर्णिगत पाठों, प्राचीन हस्तप्रतों और उपलब्ध प्रकाशित संस्करणों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययन की मूल भाषा का पुनःस्थापन किया है। उनका यह प्रयत्न स्तुत्य है। यह एक सुनिश्चित लक्ष्य है कि आचारांग आज भी भगवान् महावीर के मूल वचनों को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। पाश्चात्य विद्वान एकमत से यह मान रहे हैं कि यह ग्रंथ अपने वर्तमान स्वरूप में ई.स.पूर्व ३-४ शताब्दी की रचना है और इसकी रचना अर्धमागधी भाषा-क्षेत्र में हुई है। अतः इसकी भाषा में परवर्तीकाल में जो विकृतियाँ आ गई हैं उनका संशोधन आवश्यक है। हम प्रो. के. आर. चन्द्रा के अत्यन्त आभारी हैं कि उन्होंने इसके प्राचीन अर्धमागधी स्वरूप को पुनःस्थापित किया हैं । उनका यह प्रयत्न पूर्णतया प्रामाणिक है और आगम साहित्य के सम्पादन की दिशा में नये आयाम उद्घाटित करता है । विद्वानों के लिए यह न केवल प्रेरणास्वरूप है अपितु अनुमोदनीय और अनुकरणीय भी है । उन्होंने शब्द-रूपों के जो सांख्यकीय आँकडे प्रस्तुत किये हैं और विभिन्न संस्करणों के आधार पर जो तुलनात्मक विवरण दिया है वह उनके कार्य की प्रामाणिकता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
आशा है कि ऐसे प्रयत्न निरन्तर होते रहेंगे और हमारे युवा-विद्वान इस दिशा में रुचि लेंगे। वाराणसी
-डो.सागरमल जैन १-२-९७
તમે ઘણો પરિશ્રમ કરો છો, ઘણી ગવેષણા કરો છો. આ મારો અભિપ્રાય છે. માંડલ (વિરમગામ), ગુજરાત
– જંબૂવિજય १०-१-८७
(જૈન આગમોના સંપાદક વિદ્ધદર્ય મુનિશ્રી)
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