Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 351
________________ 317 परिशिष्ट इस ग्रंथ में प्राकृत भाषा के व्याकरण संबंधी नियमों का ऊहापोहपूर्वक प्रतिपादन किया गया है, वैदुष्यपूर्ण मीमांसा की है। विद्वान् लेखक ने प्राकृत व्याकरण की उन सभी सूक्ष्म समस्याओं पर गम्भीरता से विवेचना की है जो प्रायः प्राकृत भाषा प्रेमियों के समक्ष उपस्थित रहती हैं। सभी विषयों का विशद प्रतिपादन लेखक के गम्भीर एवं व्यापक अध्ययन तथा विस्तृत अनुभव का परिचायक है । समस्याओं को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझ कर उनके निराकरण का प्रयास किया गया है। अनेक मौलिक तथ्यों को उजागर किया गया है। लेखक की भाषा-वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि और नवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा समग्र ग्रन्थ में प्रतिबिम्बित है । लेखक का निवेदन है कि प्राचीन पाठ को मूल पाठमानकर उसे प्राथमिकता दी जाय जिससे मूल प्राचीन अर्धमागधी का संरक्षण हो सके। पुस्तक को समग्र रूप में पढ़कर यही धारणा बनती है कि यह प्राकृत के अध्ययन के क्षेत्र में नयी दिशा का उन्मीलन करने वाली है। यह ग्रन्थ लेखक की नितान्त शोधवृत्ति तथा भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि का परिचायक है । प्राकृत भाषा में रुचि रखने वालों के लिए तथा विशेषरूप से आगमों पर शोध करने वाले विद्वज्जनों के लिए अवश्य पठनीय है, संग्रहणीय है। ऐसा विश्वास होता है कि इसे पढ़कर उनकी अनेक भ्रान्त धारणाओं का निराकरण होगा । श्रमण, जन-मार्च, १९९६ -प्रो. सुरेशचन्द्र पाण्डे आपकी “परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी" नामक पुस्तक भी आपकी पूर्व-प्रकाशित पुस्तकों के अनुरूप गवेषणात्मक और उपलब्ध भाषात्मक प्रयोगों पर आधारित है। इस पुस्तक द्वारा आपने प्राकृत व्याकरण के क्षेत्र में समीक्षात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन को गति दी है। उपलब्ध प्राकृत व्याकरण के ग्रन्थों की अपनी सीमाएँ हैं । उनकी सामग्री/ विधानों का सूझ-बुझ के साथ ही उपयोग किया जाना चाहिए, यह आपकी इस पुस्तक ने प्रमाणित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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