Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
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प्रथम अध्ययन का पुनः सम्पादन
प्रा. हिंसन्ति मे त्ति
मे'
त्ति
मेत्ति
मेत्ति
शु. 'हिंसन्ति
आ. हिंसंति
जै. हिंसंति
हिंसंति
म.
प्रा. मे त्ति
शु. मे' त्ति
आ. मेत्ति
जै.
मेत्ति
म.
म.
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म.
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वा
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वा
―
णे
समारम्भमाणस्स इच्चेते
समारभमाणस्स इच्चेए
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[ २५७ ]
वा
वा
वा
वा
वा
प्रा.
शु.
आ. समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा
जै. समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा
समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा
वन्ति ।
वहन्ति ।
वहंति (५३)
वहंति ॥
वधेंति
संस्करणों के पाठों की तुलना
वधेन्ति, अप्पेके हिंसिस्सन्ति
वहन्ति, अप्पेगे
'हिंसिस्सन्ति
वहंति अप्पेगे
हिंसिस्संति
वहंति अप्पेगे
हिंसिस्संति
अप्पेगे
हिंसिस्संति
प्रा.
शु.
एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स आ. एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स जै. १४२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स
एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स
५३.
एत्थ
एत्थ
एत्थ
१४१. एत्थ
५३.
एत्थ
आरम्भा अपरिन्नाता
आरम्भा अपरित्राया
भवन्ति ।
भवन्ति,
अपरिण्णाया भवंति,
अपरिणाया
अपरिणाया
एत्थ सत्थं असमारम्भमाणस्स इच्चेते आरम्भा परिन्नाता भवन्ति ।
इच्चेए आरम्भा परिन्नाया भवन्ति ।
इच्चेते आरंभा
इच्चेते आरंभा
इच्चेते आरंभा
भवंति "I
भवंति ।
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सत्थं
सत्थं
सत्यं
सत्थं
सत्थं
परिण्णाया भवन्ति,
परिण्णाया भवंति ॥
परिणाया भवंति ।
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