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पातंजल योग पर जैन दर्शन का प्रभाव जैनधर्म-दर्शन का योगशास्त्र-पातंजल योग पर अत्यधिक प्रभाव दिखाई देता है। योगदर्शन में अनेक ऐसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं जो अन्य किसी भी भारतीय दर्शन में नहीं पाये जाते। इस प्रभाव को समझने के लिए तीन वर्गों में विभाजित करना उचित है-(1) शब्द-साम्य, (2) विषय-साम्य और (3) प्रक्रिया-साम्य।
(1) शब्द-साम्य-कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनका प्रयोग विशेष रूप से जैन आगमों और जैन-दर्शन में हुआ, अन्य जैनेतर दर्शनों में नहीं; तथा वे शब्द योगसूत्र तथा उसके भाष्य में ज्यों के त्यों प्रयुक्त हुए हैं। उनमें से कुछ शब्द उदाहरणस्वरूप निम्न हैं
भवप्रत्यय', सवितर्क-सविचार-निर्विचार, महाव्रत, कृत-कारितअनुमोदित', सोपक्रम-निरुपक्रम', वज्रसंहनन , केवली', ज्ञानावरणीय कर्म, चरमदेह', आदि।
1. (क) नन्दी सूत्र 7; स्थानांग सूत्र 2/1/71; तत्वार्थसूत्र 1/22
(ख) पातंजल योगसूत्र 1/19 2 (क) स्थानांग सूत्र वृत्ति 4/1/247; तत्त्वार्थसूत्र 9/43-44
(ख) पातंजल योगसूत्र 1/42, 44 3. (क) स्थानांग 5/1/389; तत्त्वार्थसूत्र 7/2
(ख) पातंजल योगसूत्र 2/31 4. (क) दशवैकालिक, अध्ययन 4; तत्त्वार्थसूत्र 6/9;
(ख) पातंजल योगसूत्र 2/31 5. (क) स्थानांग सूत्र (वृत्ति) 2/3/85; तत्त्वार्थसूत्र (भाष्य) 2/52 .. (ख) पातंजल योगसूत्र 3/22 6. (क) प्रज्ञापना सूत्र; तत्त्वार्थसूत्र (भाष्य) 8/12
(ख) पातंजल योगसूत्र 3/46 7. (क) तत्त्वार्थ सूत्र 6/14
(ख) पातंजल योगसूत्र (भाष्य) 2/27 & (क) उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 33, गाथा 2; आवश्यकनियुक्ति, गाथा 893; तत्त्वार्थसूत्र
8/5, 10/1
(ख) पातंजल योगसूत्र (भाष्य) 2/51 9. (क) स्थानांग सूत्र (वृत्ति) 2/3/85; तत्त्वार्थसूत्र 2/52
(ख) पातंजल योगसूत्र (भाष्य) 2/4
* योग का प्रारम्भ * 27.