Book Title: Adhyatma Yog Sadhna
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 507
________________ योग स्वस्थ जीवन जीने की पद्धति है। वह तन और मन पर अनुशासन करता है जिससे शारीरिक और मानसिक तनाव नष्ट होते हैं और जीवन में सद्विचारों के सुगन्धित सुमन महकने लगते हैं। परम आल्हाद का विषय है कि स्वर्गीय आगम रत्नाकर आचार्य प्रवर श्री आत्मारामजी महाराज का योग विषयक एक महान ग्रन्थ प्रकाश में आ रहा है। सम्पादकद्वय ने अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से ग्रन्थ का सम्पादन कर भारती भण्डार में अपूर्व भेंट दी है, तदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। मदनगंज, किशनगढ़ -उपाध्याय पुष्कर मुनि (अध्यात्मयोगी संत) ००० एक अवलोकन - 'योग' वर्तमान विश्व का सर्वाधिक उपयोगी विषय है। विज्ञान के द्वारा नित नई उपलब्धियाँ प्राप्त करने के पश्चात् भी मानव का अन्तर्मानस व्यथित है। उसे यह अनुभव हो रहा है कि जो उसे प्राप्त होना चाहिये था वह उसे आज तक प्राप्त नहीं हुआ है। भौतिक सुख-सुविधाओं के अम्बार लगने पर भी मन में शान्ति नहीं है। सामाजिक सुन्दर और उच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त करने के बावजूद भी अन्तर् में गहरी रिक्तता है। आज का मानव शांति का पिपासु है, शांति के अभाव में वह स्वयं टूटता जा रहा है। आज जितने अविकसित देश-निवासी व्यक्ति व्यथित नहीं हैं उनसे कहीं अधिक पीड़ित हैं सभ्य और विकसित, शिक्षित देशों के निवासी। शारीरिक दृष्टि से नहीं अपितु मानसिक दृष्टि से वे संत्रस्त हैं; उनमें स्नायविक तनाव इतना अधिक है कि नशीली वस्तुओं का उपयोग करने पर भी नींद का अभाव है। वे जीवन से हताश-निराश होकर अब योग की ओर आकर्षित हुए हैं; उन्हें लग रहा है कि भोग से नहीं योग से ही हमें सच्ची शांति प्राप्त होगी। सचमुच योग जीवन का विज्ञान है; वह जीवन के छिपे हुए रहस्यों को खोजता है। खोलता है। स्वस्थ जीवन, संतुलित मन और जागृत आत्मशक्तियों को अधिकाधिक विकसित करता है। संक्षेप में योग साधना की वह पद्धति है जिसमें आचार की पवित्रता, विचारों की निर्मलता, ध्यान की दिव्यता और तप की भव्यता है। योग का लक्ष्य है मनोविकारों पर विजय-वैजयन्ती फहरा कर आध्यात्मिक उत्क्रान्ति करना। भले ही परम्परा की दृष्टि से शब्दों में भिन्नता रही हो, भाषा और परिभाषा में अन्तर * अभिमत/प्रशस्ति पत्र * 429 *

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