Book Title: Adhyatma Yog Sadhna
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 512
________________ कृति आचार्य श्री आत्माराम जी म. प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. __ 'योग' वर्तमान युग का बहुचर्चित विषय है। विभिन्न धर्मपरम्पराओं के धर्मगुरुओं से लेकर साधारण गृहस्थों तक में योग के प्रति रुचि और आकर्षण में वृद्धि हुई है। इसके पीछे योग की वह चमत्कारी शक्ति है जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य प्रदान करती है। विज्ञान जहाँ भौतिक सुखसमृद्धियों के साधनों के अन्वेषण का साधन है, वहीं योग आत्मा के मौलिक गुणधर्म - अनंत आनन्द, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन और अनंत ऊर्जाओं को जागृत करने की साधना है। विज्ञान का अवदान पौद्गलिक और सीमित है। योग का अवदान अपरिमित, अपार और अनुपम है। __ आज योग और योग की विधियों का दर्शन प्रस्तुत करने वाला विशाल साहित्य उपलब्ध है। परन्तु योग के अंतःस्वरुप और अंतर्रहस्य को यथारूप विवेचित करने वाले साहित्य का प्रायः आज भी अभाव है। उस अभाव की पूर्ति प्रस्तुत ग्रन्थ द्वारा होगी, ऐसा विश्वास है। इस कृति के सूत्रात्मक रचयिता जैनागम रत्नाकर आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज हैं। पूज्य आचार्य श्री द्वारा रचित सूत्रात्मक कृति 'जैनागमों में अष्टांग योग' को श्रुताचार्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री अमर मुनि जी महाराज ने विवेचित और व्याख्यायित किया है। पूज्य आचार्य श्री जी एवं पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री जी इन आराध्यद्वय महापुरुषों का समग्र जीवन योग से अनुप्राणित रहा है। इन्होंने योगशास्त्रों को न केवल पढ़ा, बल्कि योग को स्वयं जीकर उसके अंतर्रहस्यों से साक्षात्कार भी किया। __ आराध्य-द्वय की अन्वेषणा और आराधना से आकारमान यह ग्रन्थ एक ऐसा योग ग्रन्थ है जो पाठकों को योग के सैद्धांतिक स्वरूप के साथ-साथ उसके अनुभव गम्य अमृत का भी रसास्वादन कराएगा। - वरुण मुनि 'अमर शिष्य'

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