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उपांशुजप के द्वारा मूलाधार चक्र से लेकर भूमध्य स्थित आज्ञा चक्र के सभी चक्र स्वयमेव जाग्रत हो उठते हैं। इसका परिणाम आज्ञा चक्र पर विशेष रूप से दिखाई देता है। मस्तिष्क में भारीपन नहीं रहता। स्मरण शक्ति बढ़ती है। चित्त प्रफुल्लित रहता है। तैजस् शरीर एवं तैजस् परमाणु शक्तिशाली हो जाते हैं। आन्तरिक तेज बढ़ता है। सांसारिक कामनाओं और इच्छाओं का विनाश हो जाता है। देव दर्शन होता है और दिव्य जगत प्रत्यक्ष होने लगता
उपांशु-जप जपयोग में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। .
(8) मानसजप-यह जपयोग का प्राण ही है। जपयोग में इसका सर्वाधिक महत्व है।
जिस प्रकार उपांशु-जप प्राण (श्वासोच्छ्वास) के सहारे किया जाता है उसी प्रकार मानस जप मन के सहारे होता है। स्थूल और सूक्ष्म शरीर तो क्या जपयोगी इस जप में प्राण का आश्रय भी छोड़ देता है, वह मन के द्वारा ही जप करता है। इस क्रिया से मन आनन्दमय हो जाता है। साधक को अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति होती है।
जपयोग में मानस-जप सर्वश्रेष्ठ है।
इनके अतिरिक्त भी जप के अनेक भेद हैं, यथा-अखण्डजप-इसे साधक निरन्तर करता रहता है। अजपाजप, यह सहज जप है। श्वासोच्छ्वास के साथ ही यह जप होता रहता है। इसका एक उदाहरण 'सोऽहं' का जप है। श्वास लेते समय 'सो' की आवृत्ति होती है और छोडते समय 'ऽहं' की। इस रीति से दिन-रात में हजारों की संख्या में जप हो जाता है।
जपयोग एक सरल योग है, जिसे सभी प्रकार के साधक कर सकते हैं, इसमें किसी भी प्रकार की बाधा नहीं है और न कोई क्रियाकाण्ड ही करना पड़ता है। योग की विशेष क्रियाओं और विधियों के ज्ञान तथा अभ्यास की भी कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। अतः यह सर्वजनसुलभ है। मन्त्रयोग ___संसार के सभी साहित्यों में मन्त्रों की बहुत महिमा बताई गई है। आदिम कबीलों से लेकर सभ्यता के चरम शिखर पर पहुँचे हुए मानव भी मन्त्र-शक्ति से प्रभावित हैं। जन सामान्य से लेकर वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों तथा परामनोवैज्ञानिकों ने भी मन्त्र शक्ति का लोहा माना है। मनोवैज्ञानिक मन्त्र को AUTO SUGGESTION कहते हैं। तथा वे भी यह मानते हैं कि इससे
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